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महती जातिसेवा प्रथम भाग । [ ४४७
सेठ माणिकचंदजीने स्वयं किया कि सिर्फ ४ दिन मेला रहे; तीन दिन धर्म, जाति और तीर्थ सुधारके लिये सभाएं हों और चौंथ दिन यात्रा निकले । इसका समर्थन स्वयं सेठ विन्द्रावनजीने किया । इस क्षेत्रपर लोग विना सलाहके नए मंदिर बनवा दिया करते थे जिनके प्रबन्धकी फिक्र प्रबन्धकर्तापर आ जाती थी । इससे यह प्रस्ताव हुआ कि नया मंदिर प्रबन्धकारिणी सभाकी विना आज्ञा न बने । और भी जो कोई काम इस क्षेत्रपर द्रव्य खर्च कर करना
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हो तो प्र० सभाकी राय ले लेवै । प्रस्ताव नं० ४ कन्याविक्रयके विरुद्ध पास हुआ | इसके समर्थन में स्वयं सेठजीने व्याख्यान दिया तथा कहा कि यदि किसी गरीब लड़की वालेके पास रुपया न हो तो बिरादरी प्रबन्ध कर दे, वह लड़केवालेसे न लेवे । इस प्रस्तावको शीतलप्रसादजीने उपस्थित किया था व नाथुरामजीने भी समर्थन किया था । ५ वां प्रस्ताव था कि वृद्ध व निर्बल गाय बैल पशुओंको कसाईके हाथ न बेचकर पिंजरापोल द्वारा रक्षित रखा जाय । इसको शीतलप्रसादने पेश किया और सेठ माणिकचन्दजी, जुगराजशाह आदिने जोरके साथ पुष्ट किया । छठा प्र० सभाओंके स्थापित करने, ७वां विदेशी अशुद्ध चीनी (सर) न वर्तने, वां जैन पद्धति से विवाह करानेपर था । इस समय सेठ माणिकचंदजीने प्रगट किया कि विवाह पद्धतिकी पुस्तक छपी हुई हमारे पाससे मंगाली जावै । मेलेमें आए हुए कटनी, जबलपुर आदि पाठशालाके ६९ बालक और १७ बालिकाओंकी परीक्षा बाबा दौलतराम और ब्रह्मचारी बालकराम के सामने ली गई । ७५) का इनाम बांटा गया । चैत्र वदी १३ के तीसरे
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