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महती जाति सेवा प्रथम भाग । [४५१ मिलनेके कारण व फूट मेटने में भारी परिश्रम करनेके कारण एक निम्न लिखित अभिनन्दनपत्र दिया और बहुत धन्यवाद प्रगट किया
नकल मानपत्र (सिवनी)।
सवैया तेईसा। 'पुन्य प्रताप बढ़ो जगमें यश छाप रहो महि मंडल भारी । खोल दिये चट शाल अनेक रचे धर्मालय हेतु दुखारी ॥ तीर्थनके उद्धारके कारण जैनसमाज भई आभारी । धर्मप्रचारक दानी वीर समान न अन्य भयो अवतारी ॥ १ ॥ सिवनी मध जैनसमाज विषे चिरकाल ते द्रोह बड़ो अतिभारी । उपदेशक औ डिपुटेशनके श्रमते न हटी यह फूट हत्यारी ॥ यह अवसर मुंबई सेठ प्रभाव ते मेल भयो क्षग एक मझारी । माणिकचन्द प्रदानिक जसटिस आफ दि पीस महा पदध री ॥ २ ॥ ज्ञान विधान महा गुण खान प्रसिद्ध विशुद्ध चरित्र प्रसारी। कीरत बेल बढ़ी जगमें लहके बहु मानन पत्र पुकारी ॥ जैनसमाज एकत्रित सिवनी देत हैं मानहि पत्र पुकारी । मानकचन्द प्रदानिक 'जसटिस आफ दी पीस' महा पदधारी ॥ ३ ॥ तीरथ राजके काज रखी तुम लाज कियोःपुरुषारथ भाई । अकलुन अरु शोलापुर जबलपुर मुम्बपुरी विद्योन्नति जारी ॥ छात्रनकी सुपरिक्ष्य लये दिये परितोषक तोषक कारी । प्रेम कियो हम पै इत आय जयो जग में तुम सेठ उदारी ॥ ४ ॥ ता० ३० माचे सन् १९०६
द० जुगराजसाह-मन्त्री, प्रबन्धकारिणी सभा, जैन पंचायत, सिरनी ।
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