________________
४५० ]
अध्याय दशवां ।
कुंडलपुर में सिवनीवालों का बहुत अग्रह था कि जबलपुर होकर आप यहां अवश्य पधारें। सेठजी ता० २८ सिवनीमें स्वागत मार्चकी रात्रिको सिवनी पहुंचे | स्टेशनपर और फूटको श्रीमन्त सेठ पूरणाशह आनरेरी मजिमिटाना | ट्रेट बहुतसे जैनी व अनेक अजैन प्रतिष्ठित भाइयों के साथ जे० पी० महाशय के स्वाग तार्थ स्टेशन पर आए । गाजेबाजे के साथ अपनी कोठीपर लाकर ठहराया । यहाँ विरादरी में ३ वर्षसे ऐसी फूट पड़ी हुई थी जिससे सारी विरादरीको महान कष्ट था व धर्मके सर्व कार्य बन्द थे । सेठजीने निश्चय किया कि इसको अवश्य मिटाना चाहिये । ता० २९ के दिन और सारी रात इसीका प्रयत्न किया गया । सेठजीने जजकी तरह हरएक बयान शीतलप्रसादजीसे कलम बंद कराए व गवाहियां लीं - जांच की। जो जिसने कहा उसको अच्छी तरह सुना और ता० ३० को सबेरे अपना फैसलानामा सुना दिया । सर्व बिरादरीने पहले ही फैसला मंजूर करनेकी स्वीकारता दे दी थी । इस फैसलेको सुनकर सर्व विदरीको हर्ष हुआ, सब गद् गद् बढ्न हो गए । यहाँ तीन पक्ष थे सो एक हो गए, तब उसी दिन यहां के भाइयोंने सानन्द रथोत्सव किया । श्रीजीके रथको सर्व भाई स्वयं खींचते थे । बाजार में गाते बजाते बागमें पहुंचे। वहां २ घंटे अभिषेक व पूजा करके लौटकर पंचायती मंदिरजी में आए । फूलमालकी बोली श्रीमन्त सेठ पूरण नाहने रु. ७५१ ) में ली थी। रात्रिको धर्मशाला में पुन: सभा हुई, २५० से अधिक मनुष्य जमा थे। सेठजीको सभापति किया गया । सर्व बिरादरीने सेठजीको जे० पी० पड़
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org