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महती जातिसेवा प्रथम भाग। [४१७ इस धर्मशालाके न होनेके पहले दिगम्बर जैन यात्रियोंको महान कष्ट होता था, न तो उन्हें हिन्दू लोग जगहकी कमीसे ठहरने देते न श्वेताम्बर लोग ठहरने देते थे। विचारोंको गलियों में मारे मारे फिरना पड़ता था, पर इस धर्मशालाके होनेसे दिगम्बर जैन यात्रि योंके ठहरनेका कष्ट बिलकुल दूर हो गया। हरएक परदेशी जैनी गाड़ी द्वारा व पैदल सीधा धर्मशालामें आकर ठहर जाता है और सब तरहसे आराम पाता है। श्रीमती मगनबाईजीने लखनऊ में श्री पार्वतीबाईनीको प्रेरित .
किया था कि वे प्रति चौदसको स्त्रियोंको मगनबाईजीके उपदे- उपदेश किया करें । तदनुसार बाईजीने एक शका असर । श्राविका तत्तवोधिनी सभा स्थापित
की और प्रति चौदसको स्त्रियोंको उपदेश देने लगीं। वास्तवमें सच्चे मनसे दिया हुआ उपदेश अवश्य लाभकारी व असरकारक होता है। सन् १९०५के बड़े दिनोंमें सहारनपुर जैन समुदायके संवयसे
प्रफुल्लित हो गया। ता० २४ दिसम्बरको सहारनपुरमें महासभा रथोत्सव हुआ, जिसमें वैष्णव भाई भी और सेठजी सभापति श्रीजीकी भेट · चढ़ाते थे व न्यामतसिंहके
भजन जैनधर्मकी प्रभावना करनेवाले बड़े ही चित्ताकर्षक हुए थे। ता० २५ दिस० को ७। बजे सबेरे स्टेशनपर २५० से अधिक प्रतिष्ठित पुरुष महासभाके होनेवाले सभापति बम्बईनिवासी सेठ माणिकचंद हीराचंद जौहरी के स्वागतार्थ एकत्रित हुए । आप सकुटुम्ब श्रीमती मगनबाई व सेठ
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