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महती जातिसेवा प्रथम भाग । [४१३ ट्राम गाड़ीके सामने व जैन मंदिरके पास है। इसीपर प्रवीण कारीगरोंके द्वारा बड़ी ही सुन्दर धर्मशाला बनवाई, जिसके तीन खन किये । आगेको एक महा सुन्दर लेक्चर हॉल याने व्याख्यान भवन बनवाया जिसके ऊपर गैलेरी रक्खी व सामने प्लेटफार्म बनवाया। इस धर्मशाला में करीब १७०६ चौरस गज़ ज़मीन है, तीन तरफ रास्ता है, पूर्व और उत्तरकी तरफ ब्लाकोंके नीचे दूकानें हैं । पूर्व तरफके ब्लाकके दक्षिण भागमें एक आफिप रूम है, उसके पूर्व में लेक्चर हाल है। उत्तर तरफ ब्लाक सी के मंझला ऊपरके भागमें यात्रियोंके ठहरने, रसोई व पाखानेकी जगह है। इसके दक्षिणमें खुला चौक है। फिर दक्षिणमें ब्लाक बी है। इसके ३ मंझले हैं। हरएकमें रहने, रसोई व पाखाने नलका प्रबन्ध है। इसके तीसरे खनको ट्रष्ट डीडके अनुसार केवल दिगम्बर जैन यात्रियोंके उपयोगके लिये रक्खा गया है।
आफिस रूमके ऊपर एक बड़ा कमरा किसी प्रतिष्ठित कुटुम्बके लिये है । सी ब्लाकमें १० कोठरी, ६ रसोईघर, बीमें १२ कोठरी ६ रसोई घर हैं । इनमें से दो कोठरी दवाखानेके लिये हैं । सब मिलके दवाखाना सिवाय २६ रूम और १२ रसोईघर हैं, जिनमें ४०० आदमी ठहर सक्ते हैं। मकानके नीचे २१ दुकानें हैं, जिनका किराया आता है। इस महान धर्मशालाके निर्मापणमें एक लाख पचीस हजार १२५०००) की रकम उदार सेठोंने लगाकर ऐसी आराम देनेवाली जगह बना दी है कि बम्बई में इसके समान दूसरी कोई हिन्दुओंकी धर्मशाला नहीं है। सेठोंने अपने पूज्य पिताके नामसे इसे प्रसिद्ध किया है, जिससे इसे सेठ हीराचंद गुमानजी धर्मशाला या 'हीराबाग' कहते हैं।
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