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महती जातसेवा प्रथम भाग । [४०७ को था। गांधी रामचंद नाथा सभापति थे। इसमें सेठ चुन्नीलाल झवेरचंद भी बम्बईसे शामिल हुए थे। इन्होंने तीर्थक्षेत्रों के प्रबन्धके उपाय प्रचारमें लाए जावें ऐसा प्रस्ताव किया। जबसे प्रांतिक सभाने तीर्थक्षेत्र सुधार खाता कायम किया सेठ चुन्नीलाल तीर्थीके सुधार में बराबर दत्तचित्त रहे । शिखरजी वीसपंथी कोठीका प्रबन्ध ठीक करानेके सिवाय व इसीके कुछ दिन पहले ता० २६ मई १९०५को आप पावापुरीजी गये। वहां मुनीम राघवजीने भंडारके छत्रचमरादि गिरो रख डाले थे। इनके जाते ही वह भागा। सेठजीने पावापुरीका प्रबन्ध तीर्थक्षेत्र कमेटीके हाथमें लिया। तलकचंद ईश्वरदास और पुनारी हीरामनको काम सौंपा। शोलापुरके तारको सुनकर सबको बड़ा हर्ष हुआ। पश्चात् सभापति साहको पुष्पमालादिसे सन्मानित करके सभाका कार्य समाप्त किया। इस पाठशालाके लिये उक्त तीनों संस्थापकोंने १००) मासि
कका प्रबन्ध बाहरसे कर लिया था तथा सेठजीकी २५) मा- काशीमें ता० १४ मई १९०५की सभामें सिककी मदद। ३०) मासिक काशीके भाइयोंने व २०)
बाबू देवकुमारजीने देना स्वीकार किया था। सेठ माणिकचंदजीने २५) मासिक सहायता देना स्वीकार किया सो अपने जीवन पर्यंत बराबर दिया तथा बादमें भी उनके जुबलीबागके ट्रस्टियोंने देना प्रारंभ किया है। उस समय १५ महाशयोंकी प्रब० कमेटी बनी थी। सभापति सेठजी व मंत्री बाबू देवकुमारजी, उपमंत्री बा० जैनेन्द्रकिशोर आरा व कोषाध्यक्ष बाबू छेदीलालजी नियत हुए थे। बाबू देवकुमारजी अपने बुजुर्गोंकी बनबाई हुई
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