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अध्याय दशवां । थी । वास्तवमें जो महापुरुष होते हैं उनका उपयोग जीवमात्रके हितमें प्रवर्तन करता है । आपने थोड़े दिन पहले कालेन व स्कूलोंके बड़े भुसल्मान विद्यार्थियोंसे इंग्रेजी पुस्तक देकर अहिंसापर उनके विचारानुसार निबंध लिखवाकर जो उत्तम रहे थे उनको इनाम दिया था।सेठनी नानते थे कि पुस्तक बांचते व लिखते २ मनुष्यके विचारों में फर्क पड़ता है। विचारोंके पलटनेसे ही पशुहिंसा व मांसाहार त्यागका कर्तव्य हो सकता है। द० म. जैन सभाकी ओर आपका बहुत प्रेम था । उस
. प्रान्तमें शिक्षाका प्रचार हो इसलिये जो सेठजीका चंदेके लिये शिक्षण फंड हुआ था उसकी वसूलीके लिये भ्रमण। उक्त सेठनी श्रुतपंचमी अर्थात् जेठ सुदी ५
के करीब नांदणी गांवमें गए और भट्टारकजीके मठमें ठहरे थे। वहां क्या देखा कि श्रुतपंचमीके धार्मिक उत्सवके लिये भी आतिशबाज़ी और रोशनीकी तय्यारी हो रही है तथा प्रति वर्षके समान वेश्यानृत्य भी होनेवाला है। इसपर सेठनीको बड़ा आश्चर्य हुआ। आपने भट्टारकसे इन सब कुप्रथाओंको बंद करनेके लिये निवेदन किया । भट्टारक भी समझ गए और इनकी बन्दीका आज्ञापत्र जारी कर दिया । यहां सेठजी को एक माणेकभाई नामके मुसल्मानसे भेट
हुई, जिसके कुटुम्बमें कोई मांस नहीं खाता १ दयाप्रेमी मुसल्मान- तथा जिसके उपदेशसे नांदणीके सब मुसल्माका समागम। नोंने मांस खाना छोड़ दिया था । सेठजीको
ऐसे व्यक्तिसे मिलनेसे बहुत आनन्द हुआ । आपने उसको जीवदया प्रचारार्थ और भी दृढ़ कर दिया ।
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