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अध्याय नवां । रजिष्टरोंमें लिखवा ली और ग्रंथ ईडर भेज दिये। यह रजिष्टर सेठ माणिकचंदके चौपाटीके चैत्यालयमें हैं। विद्वानोंको उससे बहुत हाल मिल सक्ता है। अभी तक ईडरके भंडारका पूर्ण उद्धार नहीं हुआ है। सेठ प्रेमचंद और सेठ माणिकचंद जैन जातिके पत्रोंको बराबर
बांचते थे। जैनगजट अंक ८ ता० १ मार्च बाबू बच्चूलालजीका १९०२ में यह पढ़कर कि महासभाके मुख्य अकाल मरण। कार्यकर्ता व गज़टके सहाई तथा समाजो
द्धारक पूर्ण उद्योगी बाबू बच्चूलालजी प्रयाग निवासी ता० १ मार्चको स्वर्ग पधारे । दोनों सेठोंको बहुत शोक हुआ, पर इस परसे ये और भी धर्मसाधनमें दत्तचित्त हो गए। सम्वत् १९५९ मिती कार्तिक वदी ५से १० मुताविक ता०
२२-१०-१९०२ से २६ तक भा० सेठ माणिकचन्दका दि० जैन महासभाका वार्षिक जल्सा चौरासी महासभामें गमन और मथुरामें बड़ी धूमधामसे हुआ । बहुतसे वितीर्थक्षेत्र कमेटीका द्वान व जातिके मुखिया एकत्र हुए थे। स्थापन। बम्बईसे सेठ माणिकचन्दनी, सेठ रामचन्द
नाथा, सेठ गुरुमुखराय, पं० धन्नालाल, पं० जवाहरलाल शास्त्री गए थे। उसी समय पं० गोपालदासजी भी आए, थे । ता० २२ अक्टूबरको पं० गोपालदासके पेश करने व सेठ माणिकचन्द, बावू देवकुमार, मुंशी चम्पदरायके समर्थनसे भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीकी स्थापना हुई, जिसके समासद ३५ चुने गए । सेठ माणिकचन्दनी महामंत्री और
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