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अध्याय दशवां। शिक्षा खाता, बम्बई कौंसिल, ता० १ अगस्ट १९०४ व नाम-सेठ माणिकचंद पानाचंदजी
प्रेसीडंट दि० जैन प्रान्तिक सभा, बम्बई । महाशय ! आपके ता. ४ जुलाई १९०३ के पत्रका उत्तर इस प्रकार देनेको मुझे आज्ञा हुई है:(अ) आगामी वर्ष जब परिक्षापत्र जांचके लिये आवेंगे तब
देशकी शिक्षा सम्बन्धी दशाकी सूचीमें जैनियोंको पृथक
दिखलानेकी बात पर ध्यान रक्खा जायगा। (ब) जुडीशियल और ऐडनिस्ट्रेटिवकी सूचीके तीसरे खाने में
बौद्ध और जैन एकत्र दिखलाए जाते हैं इसमें रदबदल
करनेकी आवश्यक्ता नहीं है । (क) ज्युडीशियल और ऐडमिनिस्ट्रेटिवकी सूचीके आठवें (जन्म
रण सम्बन्धी) खानेमें जनियोंको पृथक् दिखलाना अशक्य है।
२- सेनेटरी (आरोग्यता)के कमिश्नर साहबकी रिपोर्टमें जैनियोंके पृथक विवरण देनेके विषयमें आपको फिर लिखा जावेगा। आपका सेवक जै० स्लेडन; गवर्नमेंट सेक्रेटरी।
(जैनमित्र वर्ष ६ अं०५) सन् १९०४ दिसम्बरमें राष्ट्रीय सभा अर्थात् कांग्रेसका २०वां
अधिवेशन बम्बई में हुआ था । सभापति सर बम्बई बोर्डिंगमें सभा हेनरी काटन हुए थे। प्रदर्शनी भी बड़ी व सेठजीका यश शानके साथ हुई थी। इस निमित्त परदेशी गान। बहुतसे जैनी भी बम्बई पधारे थे। ता० ३१
दिसम्बरकी रात्रिको ७ बजे हीराचंद गुमा.
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