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अध्याय दशवाँ निवासीको १२०) इनाम देकर इसके लिये उत्साहित किया है कि उसने पीलीभीतके ललित हरी आयुर्वेदीय विद्यालयसे वैद्यराज और वैद्यरत्नकी परीक्षा में उत्तीर्ण पत्र हासिल किया है।"
सेठजी अपनी धनवृद्धिके प्रारंभसे ही परदेशी विद्यार्थियोंको छात्रवृत्तियें दे देकर उत्साहित करते रहते थे। इससे सेकड़ों तीव्र बुद्धि छात्र जो धनकी सहाय विना अपने पढ़नेकी उमंगको दवा कर बैठ रहते सो पढ़कर अपनी विद्याकी उमंगको पूर्ण करते हुए। कन्हैयालालजी शेरकोटकी पाठशालाका तीवृद्धि छात्र था जिसके अध्यापक पं० यमुनादत्त शर्मा थे । इनकी पढ़ाईके फलसे प्रसन्न हो पंडित गोपालदास और बच्चूलालजीकी सिफारिशसे उक्त पंडितजीको एक मानपत्र भा० दि० जैन महामभाने ता० २६ अक्टूबर १८९९ सं० १९५६ को दिया था तथा कन्हैयालाल सं० १९५७ की परीक्षामें प्रवेशिका चतुर्थखंडके पांचों विषयोंमें उत्तीर्ण हुआ था उसको २॥) मासिक छात्रवृत्ति श्रीमान् सेठ माणिकचंद पानाचंदकी ओरसे दी गई थी। यही पं० कन्हैयालाल आज कई वर्षोंसे कानपुरके दि जैन
___औषधालयमें इतनी योग्यतासे काम कर रहे छात्रवृत्ति देनेका हैं कि वहांके सर्जन इंग्रेजने उस औषधालअपूर्व फल। यकी प्रशंसा की है। रोगी इनके हाथसे
बहुत शीघ्र अच्छे होते हैं। नगर में इनकी चाह भी खूब हो गई है जिससे वह प्राइवेट मकानों में देखनेसे १००) व २००) मासिक कमा लेते हैं।
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