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अध्याय दशवां । श्रीमान् शेठ माणिकचंदजीने बहुत जोरके साथ किया। सेठ माणिकचंदनी सपत्नीक स्तवनिधि पधारे थे। ता० ५
फर्वरीकी रात्रिको स्त्रियोंकी एक महती सभा सेठजीकी पत्नी हुई जिसका अध्यक्ष स्थान सेठनीकी धर्मपत्नी स्त्री समाजकी नवीबाईजीको दिया गया था। इसमें अध्यक्षा। १५०० से अधिक स्त्रियां थीं। इस
सभामें श्रीमती डाक्टरनी कृष्णाबाईने स्त्रीशिक्षा पर बहुत ही असरकारक भाषण दिया । जैन समाजकी तरफसे एक अगुठी नज़र की सो डाक्टरनी बाईने विद्याखातेमें दान कर दी। उस अंगूठीका नीलाम सभामें १५०) रु० में हुआ तथा दो इनाम और भी आए थे सो भी १२०) रु० में नीलाम हुए। इस रुपयेसे त्रा शिक्षाकी उत्तेजना दी जाय ऐसा ठहराव हुआ। महाराष्ट्र सभाके जलसे में स्वयं शेठ माणिकचंदने १२
वां प्रस्ताव यह पेश किया-" बाहरसे आए धर्मादेका द्रव्य । हुए व्यापारियोंसे माल विक्री अथवा गाड़ी
___ पर सैकड़ा पीछे कुछ धर्मादा वसुल करनेकी इस ओर प्रथा है, परंतु यह धर्मादेका द्रव्य नाच तमाशोंके सिवाय किसी उत्तम लाभकारी कार्यों में कभी नहीं लगाया जाता है इसलिये प्रत्येक स्थानके मुखिया पंच महाशयोंसे प्रेरणा की जाती है कि वे उक्त धर्मादा द्रव्यको किसी सार्वजनिक कार्यमें लगानेका प्रयत्न करे । इसको वर्णन करते हुए सेठनीने समझाया कि व्यापारमें जो हम धर्मादा जमा करते हैं वह हमारी जातीय मिलकियत नहीं है परंतु धर्मके लिये वह पबलिकका पैसा है । अतएव उसको धर्म व
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