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समाजकी सच्ची सेवा । होता है । एक सौ रुपयाके व्यापार में ) आना इस कार्य में भी दे दिया करे...."
“धर्मकार्यमें किसीकी अप्रतिष्ठा नहीं होती, जैसे अलीगढ़ के सय्यद अहमद खां सिताई हिन्दने जगह २ से मांगकर कालेज बना दिया कि जिसमें लक्षोंका धन जमा होगया । हालमें अभी २०००० ०) सर्कारने भी दिया है । हम हमारे भाइयोंसे एक लाख रुपया भी एकत्रकर कालेज न बना सके। भाइयो ! विचार देखो ! परभवमें सिवाय पुण्यकर्म (धर्म) के दूसरा सुख देनेवाला नहीं है । " यह शरीर जिसको मनुष्य अपना मान रहा है चितापर ही जल जाता है, केवल शुभ या अशुभ जो किया हुआ अर्थात् कमाया हुआ कर्म है वही जीवके साथ जाता है। " " भाइयोंको अपने तनसे धनसे मनसे प्राणी मात्रका भला करनेवाली जिनवाणीका शीघ्र ही जीर्णोद्धार करना चाहिये । बम्बई के गत रथोत्सव व प्रांतिकममा बम्बईकी तीसरे दिनकी बैठक में सरस्वती देवीकी रक्षा पर भाषण देते हुए कहा था कि यदि ५००) रु. की सहायता हो तो ईडरके भंडारका उद्धार हो सक्ता है तथा आपने प्रेरणा करके पन्नालाल बाकलीवालको दो मास के लिये ईडर भेजा ।
इन्होंने जाकर बहुत से ग्रंथोंकी सूची आदि बनवाई तथा ईडरके पंचोंने कई बंडल संस्कृत ग्रंथ सेठ माणिकईडर के संस्कृत-प्राकृ- चंदजीके पास भेज दिये। सेठजीने एक त ग्रंथों की प्रशस्ति । विद्वान् शास्त्रीको निम्रत कर उन ग्रंथों के पत्र ठीक कराकर सुन्दर वेष्टनों में बांधे तथा उनके मंगलाचरण व अंतिम प्रशस्ति, ग्रंथके नंबर व हकीकत सहित
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