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समाजकी सच्ची सेवा । [३५५ जिस व्यक्तिपर माता रूपाबाईको अवलम्बन था, जो हीरा
चंद गुमानजीके कुलका सेठ माणिकचंदकी प्रेमचंदका अचानक तरह एक रत्नमय दीपक था, जिसके स्वभाव, स्वर्गवास और धार्मिक क्रिया व समाजसेवाको देखकर परोपस्वहस्तलिखित कारियोंको सन्तोष होता था कि सेठ माणिदान पत्र। कचंदके पीछे यही दिगम्बर जैन समानमें
जागृति फैलाएगा, जिसका परिणाम बहुत शांत, विचारशील और उदार था, जो संस्कृत इंग्रेजी व वर्तमान देश चाल व्यवहारसे अच्छी तरह परिचित था, जो जिनवाणीका ज्ञाता अभ्यासी व पूर्ण भक्त था, जिसका अखंड वात्सल्य और प्रेम अपनी जैन जातिसे था वही प्रफुल्लित चकता हुआ तारा यकायक अपने चहुं ओरके मनुष्योंकी दृष्टिसे इसी संवत १९५९में चैत्र सुदी १४ की रात्रिको लुम हो गया !
शरीर पिंजर वैसा ही दीख रहा है पर शरीरमें अनेक चेष्टाओंको करानेका ज़िम्मेदार चैतन्य आत्मा यहांसे चल दिया है। यद्यपि शरीर छोड़ते समय इसकी अवस्था २५ वर्षकी थी पर यह गाफिल नहीं हुआ था। रात्रिको ही अपनी तबियत जब एकाएक बिगड़ी तब आपने अपनी माता, स्त्री तथा काकाओंके सामने अपने ही हाथसे नीचे लिखा दानपत्र लिखकर हस्ताक्षर कर दिये
१-माटुंगा रोडकी जमीन जो अनुमान २००००) की है वह तथा अपनी जिन्दगीके बीमाके ५०००) यह दोनों रकमें हीराचंद गुमानजी जैन बोर्डिगकी कमेटीको इस शर्त पर देना कि "प्रेमचंद मोतीचंद स्कोलरशीप खाता" खोलकर इस
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