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समाजकी सच्ची सेवा । [३६१ हो सो करो। भाईने कुछ उत्तर न दिया। इतने में देखते २ आंखें फिरने लगीं तब पंच नमस्कार मंत्रकी घोषणा प्रारंभ हुई। सामने तीनों सन्तान भी बैठी थीं-लीलावती ७ वर्षकी, रतनबाई ५ वर्षकी व पुत्र ठाकुरभाई ३ वर्षका था-तीनों माताके पास बैठे हैं। सेठ माणिकचंदका सख्त हुक्म था कि कोई रोने न पावे न कोई शोर करे । उस स्थानपर इतनी शांति थीकि यदि कोई मखमलके गद्दे पर भी पग धरे तो उसका शब्द सुन पड़े । वास्तवमें मृत्यु होते समय पूर्ण शांति रहनी चाहिये जिससे मरनेवालेके भावों में भी शांति रहे, कोई विकल्प न पैदा हो । उस रात्रिको सेउ पानाचंदने चारो प्रकारके भोजन व औषधि तक लेनेका त्याग कर दिया था। सेठ माणिकचंदके पूर्ण प्रबन्धसे पानाचंदनीका आत्मा धर्म ध्यानमें लीन होता हुआ शांतता पूर्वक इस चर्महाड़के पोनरेसे निकलकर स्वर्गधामको पधारा।
सेट पानाचंद जवाहरातकी परीक्षामें बम्बईभर में प्रधान समझे जाते थे । आप बहुत ही शांत, विचारशील, उदार चित्त व निराश्रितको आश्रय देनेवाले थे । परोपकारार्थ मेरा धन खर्च हो यही इनके चित्त में रहा करता था, क्रोध करना तो जानते ही नहीं थे, मौन रखकर विचारनेकी आदत थी। यह कैसे गंभीर प्रकृतिके व दृढ़ मिज़ान व शांत पुरुष थे, यह बात रक्त सेटजीके चित्रके दर्शनसे भले प्रकार झलक उठती है। आपने अपने ५४ वर्षमें धर्म अर्थ और काम तीनों पुरुषार्थीको यथायोग्य पालन करके गृहीके कर्तव्यको सदाचार, सद्वर्ताव और नेक नियतीसे अच्छी तरह निवाहा आपके वियोगसे बम्बई भरमें शोक छा गया। जौहरी बाजारमें
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