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३३२ ] समाजकी सच्ची सेवा । कोई भी उपाय दृष्टिगोचर नहीं हुआ। हमारी इच्छा है कि जातिहितैषी भाइयोंको पहिले यह बात जानना चाहिये कि:
(१) हमारी बहुत बड़ी पवित्र जैन जातिके ८४ टुकड़े क्यों हुए?
(२) और सिवाय २०-२५ जातियों के अन्य जातियां शीघ्र ही क्यों ना हो गई ?
(३) और अब वर्तमानमें कौन २ सी जाति कहां २ पर कितनी २ मौजूद है ?
(४) और उनमें से कौन २ सी माति शीघ्र ही नष्ट होने वाली है ?
(५) और उनके नष्ट होने के मुख्य २ कारण कौन २से हैं ?
( ६ ) तथा नष्ट होती हुई उन जातियों की वृद्धि (उन्नति )) करनेके कौन २ उपाय हैं:
इन ७ प्रश्नोंका उत्तर प्रमाण सहित सविस्तर मिले विना जातिहितैपियोंके जात्युन्नति कारक उपाय करने हमारी समझमें तो वृथा ही हैं । इस कारण हम हमारी जातिके परमहितैषी शोधक विद्वानोंसे हाथ जोडकर प्रार्थना करते हैं कि जो महाशय उक्त प्रश्नोंके उत्तररूप एक “जैनजातिदर्पण" नामक इतिहासकी पुस्तक लिखकर भेजेंगे उनको जातिहित साधनेका महान पुण्य और यशकी प्राप्तिके सिवाय उन पुस्तकोंमेंसे ५ विद्वानों की कमेटीद्वारा जो सबसे अच्छी और
प्रमाणीक समझी जायगी उसके रचयिताको ५०) रु. नकद . इनाम दिये जायगे। आशा है कि हमारी इस प्रार्थना पर विद्वज्जन
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