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समाजकी सच्ची सवा। [३३३ अवश्य ही ध्यान देंगें । जिनको यह पुस्तक बनाना हो वे प्रारंभसे पहले हमको सूचना देकर प्रारंभ करें नहीं तो वह पुस्तक कमेटीमें पेश नहीं हो सकेगी।
जैनियोंका हितैषीजोहरी माणिकचंद पानाचंद,,
पोष्ट कालवादेवी, कम्बई। इस ऊपर लिखित विज्ञापनको पढ़नसे सेट माणकचंदनीमें जातिप्रियता कितनी चरम सीमाकी थी उसका साक्षात् पता लगता है। जैसे आज कल कोई २ विद्वान् जैन जातिकी कमीके कारणोंको ढूंढ रहे हैं व उसकी वृद्धिके उपायोंको सोच रहे हैं ऐसे ही सेठनीको चिन्ता थी।
विज्ञापन देने पर भी अबतक इस जैननातिदर्पणको किसीने भी नहीं लिखा इसका कारण यही है कि हमारे जैन विद्वान प्राचीन वाजलगाने में परिश्रम नहीं उठाते। अव भी यदि कोई इस पुस्तकका पाठक इस सुचनाके अनुसार पुस्तक तय्यार करे तो वह सेठजीकी स्मृतिमें ही समझी जायगी। पाठकोंको आगे चलकर मालुम होगा कि जातियोंकी संख्या
आदिका ठीक २ पता लगानेके लिये सेठजीने दि. जैन डाइरेक्टरी अनुमान २००००) खर्च कर दिगम्बर जैन बनानेका बीज । डाइरेक्टरी तय्यार कराके छपाई है जिसका
मूल्य ८) है इसके देखनेसे जातियोंकी कमीका पूरा २ पता चलता है पर जो २ विचार उपर दर्शाए गए हैं उन ७ प्रश्नोंके उत्तर में अभीतक किसीने कलम नहीं उठाई है।
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