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संयोग और वियोग । मेरी साथ चन्दावाडीमें चलो। मैं एक पुस्तक तुमको दूंगा जिसको तुम हररोज पढ़ना । इस बालकको बड़ा ही हर्ष हुआ जब इसने एक गंभीर मुख धनवान सेठको अपनेसे इस तरह बात करते हुए देखा । सेठजी अपने पास हमेशा ही कुछ धर्मकी व कुछ मांसाहार रोकनेकी पुस्तकें बांटनेके लिये रखते थे। उस समय सेठ हीराचन्द नेमचन्द द्वारा मुद्रित श्री रत्नकरंडश्रावकाचार हिन्दी और मराठी अर्थ सहित इनके पास था वही इनके योग्य है ऐसा समझकर उनको चन्दावाडीमें ले जाकर वह पुस्तक दी और प्रतिदिन बांचनेका नियम दिलाया । मूलचंद इस पुस्तकको पाकर बहुत प्रसन्न हुए और खुशी २ अपने घर गए । अब यह सेठसे कभी २ मिलने लगे और धर्मकी बातें मालूम करने लगे । थोड़े दिन बाद सेठनी बम्बई लौट गए। सेट माणिकचंदजीको सं० १९५५ भारी शोकोदपादक
रूपमें आया। श्रीमती मगनबाईजीकी गोदमें मगनबाईजीका जब केशर ११ मासकी खेलती कूदती थी, वैधव्य। अपनी मुलकनसे माता पिताको प्रसन्न करती
____ थी तब यकायक एक दिन सवेरेके समय खेमचंदका मग्न गर्म हो गया, खून चढ़ गया, पलंगमें लेट गए, माता व स्त्री भी आ गई, पिता भी आए, तरह २ के उपचार होने लगे। पर देखते २ बाधा इतनी बढ़ी कि दो घंटे भी पूरे नहीं हुए थे मगनमती बड़े संकोचमें पुत्रीको लिये हुए बैठी देख रही थी, माता दवाई दरमतमें लगी हुई थी कि यकायक खेमचंदने आंखें फाड़ दी, देखते २ जीव शरीरसे निकल गया। सारे अंग उपांग आत्मा
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