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अध्याय नवां ।
नकल इस प्रस्तावकी बजरिये चिट्ठी बम्बई सभाको भेजी जावेगी ) सेठ नवलचंदजी संवत् १९५३ में शिखरजी गए थे तब ६०००) का चंद्रा करके सीतानालेसे कुन्यनाथ स्वामीकी टोंकतक ५००० सीढ़ियां बनवानेका काम मुनीम हरलालजीके सुपुर्द कर आए थे। सीढ़ियों का काम चलाया गया । ७०० सिटियां बन गई थीं । इतने में श्वेताम्बरी लोगोंको यह बात पसन्द न आई । ये सीढ़ियां सर्व जैन स्त्रीपुरुषोंके आराम के लिये बनवाई गई थीं इस बातका कुछ भी विचार न करके श्वेताम्बरी भाइयोंने ता. १२ जनवरी सन् १८९९ को रात्रि के समय चोरी से २०५ सीढ़ियां तुड़वा डालीं और इस अनुचित क्रियासे महान कर्मका बंध किया | इस फौजदारी मुकदमा हुआ जिससे श्वेताम्बर कोठीके दो भाइयों को कुछ दिनकी मजा व मुचलके हुए । इस समय हरलालजी मर गए थे । रावजी वीसपंथी कोठीके मुनीम थे। इसीने यह फौजदारी मुकदमा चलाया था | बम्बई समाने सर्व जैनियोंको सूचनार्थ ४००० विज्ञापन हाथरस के मेलेपर बांटे तथा महासभाको सूचना दी। उसने मुकदमे की पैरवी के लिये एक कमेटी बनाई थी उसने प्रमादवश कोई यथोचित कार्रवाई न की । उधर श्वेताम्बरियोंने हाईकोर्ट में अपील की जिससे दिगम्बरियोंकी तरफसे ठीक पैरवी न होनेसे असफलता हुई इसीपर महासभाने उक्त प्रस्ताव पास किया था ।
सभासदोंने इस प्रस्तावको स्वीकार किया तथा निश्चय किया कि वकीलोंकी राय लेकर दीवानीमें मुकदमा चलाया जाय और एक होशियार आदमी कोशिश करनेके लिये नियत किया जाय। इसी अंतरंग सभामें सभा के कार्योंको विस्ताररूपमें लाने के
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