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अध्याय आठवाँ ।
ही तय्यार मिला कि वह जावे । हरएक काम साहस और पूर्ण प्रयनसे होते हैं। जहां प्रमाद है वहां कार्यसिद्धि कोसों दूर है । सेठ हीराचंद नेमचंद व सेठ माणिकचंद जैनियों में ऐसे प्रख्यात हो गए थे कि हरएक मुख्य कामके लिये लोग इनकी याद करते थे। पं० लालनने चिकागोसे सेठ हीराचंदको ता. ३ फर्वरी
सेठ हीराचंदको पं० लालनका पत्र |
१८९७ को एक पत्रद्वारा श्री ज्ञानार्णव और आप्तमीमांसाकी बचनका व दूसरे अध्यात्मज्ञानके ग्रंथ मंगवाए और लिखा कि यहां बहुतसे अमेरिकनोंने मांसाहारका त्याग कर दिया है ।
सेठ माणिकचंदजीके मंत्रित्व और पं० गोपालदासजीके उपमंत्रित्व में बम्बई सभा बहुत कुछ जैन समाज के उद्धारार्थ प्रयत्न करने लगी । पाठकोंने वह गुजराती पत्र वांचा ही होगा जो सेट माणिकचंदने जेठ दूजा वदी ९ संवत् १९४२ को सेट हीराचंदको लिखा था कि एक मंडल ऐसा स्थापित हो जो सम्पूर्ण मुल्कों में जैन धर्मज्ञानको फैलावे, कुरीति मिटवावे आदि । उसी अपने अंतरंग भावकी पूर्ति सेठ माणिकचंदजी, पं० गोपालदासनी आदिकी सहायता से धीर२ करने लगे । वास्तवमें विचार कर होता है और कार्य का होता है । जहाँ विचार पक्का होता है वहाँ कालान्तर में यदि कोई अनिवार्य विघ्न न आवे तो वह पुरा होता ही है । बम्बई सभा में पारितोषिक खाता पहले ही खोल दिया था । जैन बोधक अंक १३४ मास अकटूबर १८९६ में भारत
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बड़े दिन जैन परीक्षालय
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