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संयाग आर वियोग । वर्षके १७ शहरोंकी पाठशालाओंके १४६ छात्रोंने रत्नकरंड, द्रव्यसंग्रह, प्रमेयरत्नमाला, चंद्रप्रभुकाव्य आदिमें परीक्षा दी, १०२ घास हुए और ११७) का इनाम बांटा गया । उस समय बम्बई, जैपुर, खुरई, शोलापुर, हिसार, सिरसावा, अलीगढ़, दिहली, मुसदाबाद, कामा, प्रयाग, शिवनी, शेरकोट, वर्धा, अवागढ़, रोहतकको पाठशालाएँ शामिल हुई थी । अधिकसे अधिक विषय धर्ममें तत्वाथैमूत्र, व्याकरणमें कातंत्र, काव्यमें धर्मशर्माभ्युदय, न्यायमें प्रमेयरत्नमाला थे । आज भी वही परीक्षालय सेट राबजी सखाराम दोशी शोलापुरके प्रयत्नसे नियमित रूपसे चल रहा है । यद्यपि पाठशालाओंकी संख्या बहुत नहीं बढ़ी-२०-२५ ही शामिल होती हैं पर पठन विषय बढ़ गया है । अब गोम्मसार, राजवार्तिक, भट सहस्त्री, प्रमेयकमलमार्तड, शाकटायन, जैनेन्द्र, यशस्तिलक आदिने डात्र परीक्षा देते हैं। स्वाध्यायका प्रचार बढ़ानेके लिये सेट माणिकचंदने चौपाटीपर
एक पुस्तकालय खोल दिया था। जितनी जैनधर्मपुस्तक जहां कहीं भी पुस्तकें छपती थीं उनको प्रचार । बहुतसी प्रतियां मंगा लेते थे और उन्हे चौशाटी
___ दर्शनार्थ आनेवाले भाइयोंको न्योछावर लेकर व बहुतोंको योंही देते थे । पाठशालाओंमें अर्थ मूल्यपर व कहीं भेट भी भेजते थे। सवेरे रात्रिको आप अपना कुछ समय व उपयोग इस काममें भी लगाते थे। जैन बोधक अंक १३४ माह अकटूबर सन् १८९६ में आपने नोटिल भी छपवा दिया था कि तत्त्वार्थसूत्रकी बालबोधनी टीका हमारे यहाँसे मंगाई जावे ।
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