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२४० ] अध्याय सातवाँ । इस समय आपकी अवस्था ४० वर्षकी थी। अपनी इस
उम्र में आप अपनेको ज्यों २ पुग्यशाली सेठजीका परोपकार देखते थे त्यों त्यों अधिक यह धर्ममें तल्लीन व कार्यकुशलता। होते थे । अनेक गुनरात व दक्षिणके जैनि
योंको यह आश्रय देकर कुछ मास अपने ही स्थान पर रखकर उनको भोजनादिकी सहायता करते थे फिर आजीविकामें जोड़ देते थे । आम सभाओंमें जाना समाचारपत्र बांचना, जो नई पुस्तक गुजराती भाषाकी निकले उसको पढ़ना; कुछ समय भी वृथा न खोना, सवरेसे रात्रि तक नियमित रूपसे हर एक काममें लगे रहना ही सेठ माणिकचन्दके समयका उपयोग था। जिस लक्ष्मीको इन्होंने और इनके भाइयोंने बुद्धिबलसे उपार्जन किया था उसका भलीप्रकार उपयोग करना यही इनकी भावना थी और व्यापारके समय व्यापार में ऐसी चतुराईसे वर्तते थे कि इनके पास जो ग्राहक आता था वह लौट कर नहीं जाता था । जो दाम यह कह देते थे विश्वासके साथ दे देता था। जाहर लोगोंमें अधिक मिलने जुलनेसे जिस किसीको कुछ जवाहरातकी जरूरत पड़ती थी सेठ माणिकचंदको याद करता था। यह उसकी मरजीके माफिक उसको माल दे देते थे और दाम इतना ठीक लेते थे कि दूसरा कोई भी नहीं दे सक्ता तथा उसे भी विश्वास आता और यदि वह दूसरोंसे बाजारमें जांच कराता तो ठीक पाता । अपने मेलके कारण यह बहुत रुपया कमाते थे इसलिये यह वात प्रसिद्ध थी कि जैसे सेठ पानाचन्द माल खरीदने में चतुर हैं वैसे सेठ माणिकवाद माल वेचने में प्रवीण हैं।
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