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२५६ ] अध्याय आठवा। होता था कि नहीं ? जहाजमें स्पर्शास्पर्शका कुछ दोष नहीं है। इसके पीछे गोपालदासजीने कहा कि श्रीपालराजाका
प्रमाण भी है और अभी उस वक्तमें बहुतपं० गोपालदासजी- से जैनी भाई बम्बईसे कोडियाल बंदर और का विचार समु- मूलबिद्रीसे बम्बईको आगबोटमें बैठके द्रयात्रामें। आते हैं सो वहां रसोई पानी बनाके खाते
हैं । गये साल सेठ मूलचन्दनी और दूसरे २०० आदमी नैनबिद्री मूलबिन्द्रीकी यात्राको गये थे उनके साथ मैं भी था और पंडित लक्ष्मीचंदजी लश्करवाले भी थे सो हम सब मंगलोर बंदरसे आगबोटमें बैठके गोवा बंदरको दो दिनमें आए थे। आगबोटमें अपना अलग चुला बनाके रसोई हुई थी, सो सेठ मूलचंदजी और मैं और दूसरे भी कितनेक जैनी भाईयोंने उस आगबोटमें बैठके रसोई जीमना, पानी पीना सत्र किया था तो अमेरिका और इंग्लैंड जाते वक्त आगबोटमें अपना अलग चूल्हा बनाके और अलग पानी रखके शुद्धता पूर्वक रसोई करके जीम लेगा तो धर्मकी अथवा जातिकी भी कुछ हरकत दीखती नहीं है सो सब भाइयोंके दिल में पसन्द होवे तो नीचे लिखी हुई चार बातोंकी अनुकूलता मिलनेसे आदमी भेनदेना ऐसा इस सभाकी अभिप्राय बड़े २ शहरको भेनदेना ।
चार बातोंकी तफसील
१-अंग्रेनी और संस्कृत पढ़ा हुआ एक जैनी मिले तो बहुत उत्तम, नहीं मिले तो एक संस्कृतका विद्वान और एक इंग्रजीका
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