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संयोग और वियोग । [२५९ म्बरी जैन विद्वान चिकागो नावे और सत्य जैनधर्मका सिद्धान्त प्रतिपादन करे । पर उद्योग करनेपर भी न कोई जानेवाला वीर ही तय्यार हुआ और न समाजने रुपये का प्रबन्ध किया, इससे सेठजीको बहुत हताश होना पड़ा। इंग्रेजी विद्याकी जैनियों में उन्नति हो और साथमें वे जैन
धर्मको भी जाने इस प्रकारकी उत्तेजना देने में चौगले बेलगांवको सेठ माणिकचंद और सेट हीराचंद नेमचंदका छात्रवृत्ति । पुरा ध्यान रहता था। सेट हीगचंदके बम्बई
रहनेसे माणिकचंदको धार्मिक व परोपकारके कार्यों में अच्छी२ सम्मति मिलने लगी और असमर्थ जैन परदेशी छात्रोंको मासिक छात्र वृत्तिया देना प्रारंभ की।
पाठकगण जानते ही होंगे कि दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभाके मुख्य संचालक व दक्षिणके जैनियों में जागृति फैलाने वाले श्रीयुत अण्णाप्पा फड्याप्पा चौगले बी. ए. एल एल.बी. वकील बेलगांव हैं। यह पृना दक्षिण कालेज में पहला वर्ष बी. ए. पास कर चुके थे । इनको सारसे १५) मासिक छात्रवृत्ति मिलती थी, पर इनके अधिक बीमार होनेके कारण वह मिलना बंद हो गई थी, स्थिति गरीब थी, विना मढ़ आगे पढ़ना बंद होता था । सेठ माणिकचंदनीके पाम इनका पत्र आने से एक वर्षके लिये आपने और हीराचंदनीने ६) छ: छः रु. मासिक छात्रवृत्ति देनी चालू कर दी और धर्मग्रंथ देखने की प्रेरणा की। इस सहायताका फल यह हुआ कि कुछ दिनों बाद इसने संस्कृतमें एक जिनस्तुति बनाके सेटोंके पास भेजी जिसका नाम तापापहार स्तोत्र है सो यहां दिया जाता है--
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