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अध्याय आठवाँ ।
बम्बईवालोंने धर्मरक्षा के अबतक अच्छे२ प्रशंनीय कार्य किये हैं । तीर्थीका सुधार व परीक्षालय द्वारा भारतकी पाठशालाओं की परीक्षा लेना व संस्कृत विद्याकी उन्नति आदि कार्यों में बहुत बड़ा काम किया है | सेठ माणिकचंदजी बड़े ही नियमित काम करनेवाले थे । प्रति सुदी १४ को नियमसे सभाको बुलाते और व्याख्यान कराते थे।
स्थापना ।
सं० १९४९ में चौपाटीका रत्नाकर पैलेस भी बनकर तय्यार हो गया, जो भवनवासी देवोंके भवरत्नाकर पैलेस में श्री नको हंसता था । पैलेसकी ऊंची टावर दूरसे चंद्रप्रभु चैत्यालयकी दिखलाई पड़ती था । समुद्रकी मनोहर ठंडी वायु हर वक्त इस महलकी वैय्यावृत्य में ऐसी लीन थी कि इसे बिलकुल स्वच्छ रखती थी। महल में फर्शसे पत्थर जड़ा हुआ था । भीतों पर चित्रकारी व रंग साजीका काम किया गया था । शीशेके कपाट रत्नाकर पैलेस के नामको सुशोभित करते थे । हरएक कमरे में मनोहर पलंग, कुरसी, टेबुल, अलमारी, लम्प, झाड आदि फरनीचर सजाया गया था । बीचके बड़े हाल में बैटकखाना था जिसमें संगमर्मर की टेबुलें पड़ी थीं। चारों ओर कई कुरसियां पड़ी थीं तथा 'बम्बई समाचार' आदि पत्र रहते थे । हालके चारों ओर भीतके सहारे आराम कुरसियां मनोहर गद्देदार कुछ बैठने लायक और कुछ लेटने लायक थीं, कई बड़े २ दर्पण लगाए गए थे, कई बड़ी २ तसवीरें व कहीं २ पर बड़े सुन्दर खिलौने सजाए गए थे । सारा महल एक दर्शनीय प्रदर्शनी बन गयी थी । चैत्यालय भी बहुत ही
टेबुलपर
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