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संयोग और वियोग ।
२४५ फिर गर्भ रहा । तब सेठजीने खास दासियां नियत की कि वे गर्भकी सम्हाल व रक्षा करें। सेठ नवलचंदका प्रथम पुत्र ताराचंद इससमय ४ वर्षका
था। इसका शरीर स्वास्थ्ययुक्त था। माता सेठ नवलचंदके बड़ी ही यत्न रखती थी। पिता भी हरसमय द्वितीय पुत्रका सम्हाल करते थे । प्रसन्नबाईको फिर भी गर्भ जन्म। रहा। संवत १९४९ आसोन वदी ३० के दिन
शुभ महूर्तमें जुबिली बागके बंगले में बाईने हि. तीय पुत्रको जन्म दिया । यह बालक बहुत ही सुन्दर शरीर न सौम्य बदन था । माता देखकर गद्गद् बदन हो गई। सेठोंको भी बड़ा हर्ष हुआ। विधि सहित सर्व उत्सव किया । दान धर्म न किया और पुत्रका नाम रतनचंद रक्खा । पानाचंद और माणिकचंदके कोई पुत्र न था इससे स्वाभाविक है कि इनके व इनकी पत्नियों के दिलों में कोई ईर्षाभाव उत्पन्न हो । परंतु ये भाई ऐसे सरल प्रकृति व धर्मात्मा थे कि इनको अंत:करणसे हर्ष हुआ। पानाचंद व्यापारकी धुनमें अधिक रहते थे । माणिकचंद और चतुरबाईका चित्त मगनमती पुत्री के कारण भरा हुआ था। ये इसे पुत्रकी भांति चाहते थे । - आगरा निवासी पंडित गोपालदासजी संवत् १९४९ के
आषाढ़ मासमें बम्बई रहनेके लिये आए । श्रीयुत पंडित पंडितजीका जन्म संवत् १९२३में बरैया गोपालदासजी। जातिधारी लक्ष्मणदास पिता और लक्ष्मीमती
माताके द्वारा हुआ था। पिताका देहात सं. १९३० में हो गया। माताने बहुत कष्टसे इनको मैट्रिकुलेशन तक
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