________________
लक्ष्मीका उपयोग । [२३५ शामको सीखते थे। एक दिन आप ठोकर खाकर इस तरह गिरे कि टांगकी हड्डीमें ऐसी भारी चोट आई कि जिससे जन्म पर्यंत टांग सीधी न हुई। पैरका सांवा उत्तर गया। अब उनका दौड़ कर चलना सदाके लिये बन्द हो गया। बहुतसे पारसी हड्डी ठीक करनेवालोंकी दवा की पर आर.म नहीं हुआ। कुछ दिन तक जाना आना कम करना पड़ा । सेठनीको चोट लगी देखकर चतुरबाईको बहुत दुःख हुआ। यह बाई जरा सुकुमार अंगी और अशक्तिके कारण कभी कभी कठोर मन हो जाती थी व चिढ़ जाती थी। इस समयमें इसने घरके कामकाजके कारण दोनों छोकरियोंका पढ़ना शालामें बन्द करा दिया । यद्यपि सेठजीकी टांगमें हड्डीकी चोट आनेसे अशक्ति होगई थी तो भी आपका साहस किसी भी काममें कम नहीं हुआ था । अब आपको चलते वक्त एक लकड़ी रखनी पड़ती थी । लकड़ीके सहारे आप और मनुष्योंकी तरह रास्तेमें चलते थे व विना लकडी भी. थोड़े बहुत कदम चल सक्ते थे । इन दिनों प्रछाल पूजनमें अंतराय आगया था पर दर्शन व स्वाध्याय आप बराबर करते थे । दूकानपर जाकर व्यापार करने में कोई त्रुटि नहीं थी । वास्तवमें विचार किया जाय तो इस कर्म ग्रसित प्राणीको कोई न कोई विघ्न आही जाता है जिससे यह अपनी शक्तियोंको इच्छानुसार वर्तन करनेमें लाचारीसे असमर्थ हो जाता है। ऐसी दशामें भी जन्मभर आपने मिहनत की। प्रतिदिन शामको दो दो मील पैदल विहार किया है। कभी आलस्य प्रमादको अपने में नहीं आने दिया ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org