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लक्ष्मीका उपयोग । [ २३७ सं. १९४८ तक आप ७ या ८ वार पालीताना गए ।
इनके साथ इनकी पुत्री मगनमती सदा जाती पालीतानामें दौरे थी। सेठजी इसको अपने पुत्रके समान और मदद। मानते थे। हरतरहकी शिक्षा देते थे।
मगनमतीका भी मन सदा पिता ही के साथ भरता था लड़कईसे साथ २ भोजन करने व बैठनेकी आदत पड़ गई थी। पालीतानामें काम देखते देखते कभी दोपहर होजाती थी पर मगनमती पिताके विना भोजन नहीं करती थी उन्हीके साथ आप भी काम देखा करती, जब सेठजी खाते तब ही जीमती । कई २ घंटे तक कभी २ इसे अपनी भूख दाबनी पड़ती थी। सं. १९४८ तक मंदिरके बनने में बहुतसा रुपया बाहरसे आकर लगा तो भी सेठनीको धीरे २ करके १०००० ) पालीताना क्षेत्रके नाम लिख कर भेजना पड़ा। पालीतानामें एक बड़ी धर्मशालाकी आवश्यक्ता है ऐसा
सेठजीके मनमें खटका करता था । नदीके पालीतानामें धर्मशा. तट भैरोपुरा अब वसता है पहले वहां जंगल लाके लिये जमीन । था जब कभी सेठजी उधरसे जाते मुनी
___ मजीको कहते थे कि देखो यह जमीन आगे चलके बहुत कीमती होजायगी इससे इसे मौका लगे तब जरूर खरीद लेना ज्यों २ ढीलकी गई दाम बढ़ गए आखिर ॥) गन पर २७००)में जमीन खरीद ली। रुपया जो कम पड़ा सो सेठोंकी दुकानसे मंगाया गया । यद्यपि मंदिरजी सं. १९४८ में तय्यार हो चुका था पर इसकी प्रतिष्ठाका महूर्त संवत् १९५१ में बना था।
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