________________
२३४ ] अध्याय सातवाँ । पाठकोंको मालूम है कि सेठ पानाचंदकी द्वितीय स्त्री नवी
बाई भी कम संयोगसे सदा बीमार और सेठपानाचंदकी द्वीतीय अशक्त रहा करती थी। रुपाबाईनी बड़ी स्त्रीकी मृत्यु । शांतिसे सर्व बरदास्त करती थी । किसीसे
कभी लड़ने झगड़नेका अवसर नहीं आने देती थी। श्री सनयकी यात्रासे लौट कर यह बहुत बीमार हो गई और थोड़े दिन दुःख सह कर शरीरको त्याग गई। इसके द्वारा सेठ पानाचंदनीको सन्तति रत्नका लाभ नहीं हुआ। सेट पानाचंदनीको यद्यपि धनागम व प्रतिष्ठा लाभकी वृद्धिका सम्बन्ध खूब हुआ था पर इनको स्त्री व पुत्रके द्वारा अबतक मनको सन्तोष प्राप्त नहीं हुआ था। वास्तव में यह संसार ऐसा असार है कि इसमें कोई भी प्राणी इतने भारी पुण्यके उदयको नहीं रखता है जो सत्र तरह निराकुल और सुखी रहे । इसीसे योगीनन सांसारिक सुखकी आशाको छोड़कर आत्मिक आनन्दके लाभको ही श्रेष्ठ लाभ मान उसीके लिये प्रयत्नशील रहते हैं। सेठ माणिकचंदनी भी अब इसी जुबलीबागके बंगलेमें रहते
थे। प्रतिदिन रोटी खाके दूकान जाते थे । सेठ माणिकचंदके शामको लौट आते थे। धर्मसाधनार्थ श्री पगमें अमिट जिन मंदिरजी कभी पैदल कभी गाड़ी पर चोट। जाते थे। इस समय फुलकुमरीकी उम्र १३
व मगनमतीकी ११ वर्षकी थी। पहली ४ व दूसरी ३ चौपड़ी गुजराती तक पढ़ीं थीं। सेठ माणिकचंदनीको ट्राइसिकिल पर चढ़ना सीखनेका शौक हुआ। आप रोज़
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org