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अध्याय सातवाँ |
सेठ माणिकचंदका कुटुम्ब पहले जब सुरतसे बम्बई आयातब एक किराए के मकान में ही जौहरी बाज़ार में जुबिलीबाग का निवास रहता था। जब सं० १९२७ में दूकान और ताराचंदका खोली तब वह भी एक किराए के मकान में ही थी पर द्रव्यकी वृद्धि होनेपर सं० १९३५ में मोती बाजार में एक बड़ा मकान
जन्म |
४ खनपर खरीद किया, जबसे उसीमें दूकान रक्खी व वहीं रहने भी लगे । तथा आज भी सेठ माणिकचंद पानाचंदका फर्म उसी मकान में है । शहरकी घनी वस्तीसे कुछ दूर खुले स्थानपर तारदेव मुहल्ले में एक जुबिलीबाग नामका स्थान था । इसको सं० १९३८ में करीब २५०००) में खरीद किया था । अब इसमें बहुतसी दूकानें हैं भीतर कमरे हैं बीचमें बंगला है आगे बगीचा है । इसमें श्राविकाश्रम है । कई वर्ष बाद उस बागकी इमारत के ठीक होने पर हवाकी स्वच्छता के कारण सर्व कुटुम्ब इस बागमें रहने लगा । सेठ नवलचंदकी स्त्री प्रसन्नकुमारीके कुछ वर्ष पहले एक पुत्रीका जन्म हुआ था पर उसका जीवन अल्पकाल ही रहा और वह चल बसी । सं० ० १९४५ मिती कार्तिक सुदी २ का दिन सेठ नवलचंद और उनकी पत्नीको बड़ा ही आनन्दवर्धक हुआ क्योंकि उस दिन इनको एक पुत्रका लाभ हुआ । पुत्रके जन्मसे तीनों भाइयोंको बड़ा ही हर्ष हुआ। मंदिरजीमें पूजा कराई गई, यथोचित दान पुण्य किया गया सम्बन्धियोंको तृप्त किया गया, और पुत्रका नाम ताराचंद रक्खा । पुत्रकी रक्षाका सेठ नवलचंदने
पूरा २ यत्न किया,
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