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२२६ ] अध्याय सातवाँ । अनाजके व्यापारसे छुड़ाकर किसी अच्छे काममें लगा दो। सेठनीको अपनी बातका बहुत खयाल रहता था। आपने तुर्त कहा कि आप लोग सनोत पत्र देकर धर्मचंदजीको बुला लेवे , वह बहुत धर्मात्मा
और सच्चा आदमी है। सेठजी तो संघको लेकर श्री गिरनार आदिकी यात्रा करते हुए केशरियाजी गए । वहाँ भावसे यात्रा करके खूब दान पुण्य करते हुए बम्बई लौट आए। उधर भावनगरके पंचोंने तुर्त धर्मचंदको पत्र लिखा । धर्मचंद पत्र पाते ही गद्गद् हो गया। ग्रामकी छोटीसी दूकानमें काम करते हुए दुःखी रहता था । इसकी स्त्री भी मालमता बेचनेमें चतुर थी। प्रायः गुजरातकी स्त्रिया छोटे२ दूकानदारोंको व्यापारमें मदद दिया करती हैं । धर्मचंदने दूकान स्त्रीको सौंपी और आप तुर्त भावनगर आ गया । वहाँ वालोंने भी इसको जिनेन्द्र भक्त व धर्मात्मा देखकर इसे मुनीम नियत कर पालीताने भेजा। यह १ मास रहे पर स्वीके विना भोजन बनानेका कष्ट रहता था सो छुट्टी लेकर घोघा बन्दरसे जहाज़ पर सूरत आए। यहाँके दिगम्बर जैन पंचोंको पालीतानामें नया मंदिर बननेकी आवश्यक्ता व वहाँकी दुर्व्यवस्था वर्णन की। यहाँसे अक्लेश्वर जा सजोतकी दूकानको उठा मालमता बेंच स्त्री सहित धर्मचंदजी पालीताना पहुंचे और जहाँ प्रतिमा विराजमान थी उसीके एक तरफ यह स्त्री सहित रहने लगे और सर्व काम सम्हाल कर सेवा पूनामें दत्तचित हो गए । सेठ माणिकचंदको वारवार पत्र लिखा कि आप एक दफे यहां आकर व्यवस्था ठीक करावें
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