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अध्याय छठा । भी शरीर निर्बल और रोगी बना रहता था जिससे सेठ पानाचंदको पत्नीका यथेष्ट सुख प्राप्त करनेमें बहुत अन्तराय भोगना पड़ता था। सेठ माणिकचंद और चतुरमतीमें अतिप्रेम था। चतुरमती
गर्भवती हुई और मिती फागुण वदी १ संसेठ माणिकचंदको वत् १८३४ के दिन एक कन्याको उत्पन्न पुत्रीका लाभ। किया निसका नाम सेठ हीराचंदने फूलकुं
वरी (फुलकौर) रक्खा । वृद्धावस्थामें पौत्रीका मुख देख हीराचंदकी आत्माको बहुत संतोष हआ। इस कन्याके जन्मका यथोचित उत्सव किया। यह कन्या चतुरमतीके द्वारा दिन परदिन वृद्धिको प्राप्त होने लगी। सेठ माणिकचंद कभी२ घरमें शामके वक्त भोजन करके इसे हाथमें लेकर खिलाते व इसका गुलाबके फूलसदृश मुख देखकर आनन्दित होते थे। इस संवतके चातुर्मासमें अंकलेश्वर (गुजरात) नगर में
त्यागी महाचंद्रजीने चातुर्मास किया त्यागी महाचंद्रजीका था । यह त्यागी प्राकृत व संस्कृतके बड़ेभारी परिचय। पंडित थे। इनको गोम्मटसार त्रिलोकसारादि अ
नेक ग्रंथ कंठ थे। इन्होंने कई ग्रंथोंकी रचना की है। अधिक निवास सीकर (राजपूताना) की तरफ रहता था। इनका रचा एक जैनेन्द्रपुराण सीकर में मौजूद है जिसके कुछ भाग उनके शिष्य पंडित रिषभदास बड़ाछिन्दवाड़ा (मध्यप्रदेश) के पास देखनेमें आए हैं। इस ग्रंथमें चारों अनुयोगोंका वर्णन प्राकृत, संस्कृत और देश भाषा तथा छंदोंमें हैं, अभी तक इसकी प्रसिद्धि नहीं हुई है।
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