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२०२ ] अध्याय सातवाँ । ऐसे रमणीक अतिशय क्षेत्रके दर्शन प्राप्त कर सेठ माणिकचंदके
संवको बहुत ही आनन्द प्राप्त हुआ । बड़े. सेठ माणिकचंदकी पर्वत पर चढ़ते हुए सेठजीने देखा कि वृद्ध दया और सीढ़ियोंका पुरुष व स्त्रियोंको बहुत ही कष्ट हो रहा है, प्रबन्ध। पत्थर चिकना ढालू है बारबार पैर फिसलता
है। सेठजीका शरीर भी छोटा व भारी था। इनको भी पर्वत चढ़ते हुए बहुत कष्ट हुआ। यह चढ़ते २ विचारने लगे कि यदि इस पर्वतपर सीढ़ियां बननावें तो सदाके लिये यात्रियोंका. कष्ट दूर हो जावे । अबतक लाखों हजारों ही यात्री हो गए होंगे किसीके दिलमें यह भाव पैदा नहीं हुआ । पाठकगण, इससे समझ लेंगे कि किस कदर भारी परोपकारबुद्धि सेठ माणिकचंदमें थी। आप ऊपर गए, संघसहित परमानंददायक श्री बाहुबलि स्वामीके दर्शन करके अपने जन्मको कृतार्थ मानते हुए । पानाचंद भी बहुत ही प्रसन्न हुए । सर्वने वहां बड़ी भक्तिसे चरणोंका प्रछाल किया फिरः अष्ट द्रव्यसे खूब भाव लगाकर पूजन करके महान पुण्य उपार्जन, किया । दर्शन करते २ किसीका भी मन नहीं भरा।
दूसरे दिन छोटे पर्वतोंके मंदिरोंके दर्शन किये। श्री भद्रबाहस्वामीके सीढ़ियोंके चंदेमें १०००)। सेठ माणिकचंदने अपने भाईसे सलाहकर
चरणोंको स्पर्शकर महान आल्हाद प्राप्त करते अपने संघको एकत्रकर निश्चय किया कि बड़े पहाड़पर २००० सीढ़ियां बनवादेनी चाहिये । ५०००) से अधिककी एक पट्टी की जिसमें आपने १०००)की रकम भरी । रुपया एकत्रकर पट्टाचार्यजीके सुपुर्द किया कि इससे सीढ़ियां बनवा दी जावें। यह काम सेठ माणिकचंद
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