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| अध्याय सातवाँ ।
बहुत हर्ष बहुत हर्ष हुआ कि इधर
सेठ हीराचंद को हुआ कि इधर ग्रन्थोंक छपने का रिवाज है। पूछने से मालूम भी हुआ कि इधर कोई विरोध नहीं करता है । इस समय सेठ हीराचंदजीके दिलमें यह पक्का इरादा हो गया कि यात्रा से लौट कर जिस तरह बने ग्रंथोंक मुद्रण करके प्रचार करनेका कार्य्य हाथमें लेना चाहिये । यहाँ से मैसूर गए। वहाँ एक धनवान व्यापारी मोदीखाने तिमात्रा के मकान में उतरे थे। इनके यहाँ जिन चैत्यालय है तथा इनके ४ पुत्र हैं १ शांतराजय्या, २ अनंत राजय्या, ३ ब्रह्मसूरिअय्या ( इन्होंने मैट्रिकुलेशन तक इंग्रेजी अध्ययन किया था ), ४ पद्मनाभरैय्या | यहाँ सेठजीने ग्रंथ भंडार देखा उसमें पुरुदेव चम्पू, जीवंधर चम्पू, गद्यचिंतामणि आदि ग्रंथ देखे । यहाँ नाग कुमार और राजण्णा दो जैन संस्कृतके विद्वानोंसे मिले । यहाँ अपार पिले फोटोग्राफर से १२) रु० में सेठजीने श्रवण बेलगोलाके दोनों पहाड़ों के गोमट्टस्वामी तथा चारुकीर्ति पट्टाचार्य के ऐसे ४ फोटो लिये । यहाँसे शारंगपट्टण होते हुए गाडी द्वारा श्रवणबेलगोला आए ।
श्रवणबेलगोला में पहुंचकर इन्होंने विद्वान शास्त्री ब्रह्मसूरिजी से बहुत प्रीति उत्पन्न की। उन्हींके साथ वहाँ की यात्रा भी की तथा वहाँ के भट्टारक पट्टचार्यजी से भी बहुत स्नेह बढ़ाया । मनमें यह विचारा कि जो ब्रह्मसूरि शास्त्री हमारे साथ मूलबिद्री चले तो उन बलादि ग्रन्थोंका महत्त्व प्रगट होवे और उनके जीर्णोद्धारका उपाय किया जावे । सेठजीने अपने संघसे पट्टी करके वहाँके मंदिरादिकी मरम्मतके लिये जो रुपया दिया इससे इनका प्रभाव बेलगोला के जैनियों पर अच्छा पड़ा । ब्रह्मसूरिजीने अपना शास्त्र मंडार भी दिखाया
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