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लक्ष्मीका उपयोग ।
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ने इतने महत्वका किया कि आजतक इन सीढ़ियोंके द्वारा यात्रियोंको आराम पहुँच रहा है व आगामी पहुंचेगा। ____ वहांसे संबने श्री मूलबिद्री जानेका विचार किया और गाड़ियोंके द्वारा पैदल प्रस्थान किया।
मूलबिद्रीके रास्ते व मूलबिद्रीका कुछ हाल ऊपर लिखित जैन बोधकके अनुसार यहां कुछ दिया जाता है:श्रवणबेलगोलासे १ कोस वसतीहेली गाँवमें एक जिन
मंदिर है जिसकी प्रतिष्ठा नयकीर्ति बैलगाड़ी द्वारा मूल- सिद्धान्त चक्रवर्तीके हाथसे हुई है । विद्रीकी यात्रा । यहाँसे १३ मील चंद्रायण पट्टण गांव आता
है। यहां जैनके २ घर हैं पर मंदिरजी नहीं है। यहासे ८ मील शांतप्राम है जिसको हालीवीड़ी राजा बल्लालकी स्त्री शांतलादेवीने बसाया था। यहाँ शांतिनाथजीका मंदिर है, ४ जैन घर हैं। यहाँसे ८ मील हासन शहर हैं, २ जिन मंदिर हैं, यहाँसे २० मील हालीवीड है यहां ३ जिन मंदिर है श्री आदिनाथजीके मंदिरके बाहर प्रतिमा के नीचे एक लेख है जिसका भाव यह है:
"मूल संघ देशीय गच्छ गण पुस्तक कुंदकुंदान्वय, इंगलेश्वर ग्राममें माघनदि भट्टारकके शिष्य दोय श्री नेमिचंद्र भट्टारक देव
और श्रीमंत् अभयचंद्र सैद्धांतिक चक्रवर्ती जिसमें पहले हैं सो वालचंद्र पंडितदेवके शिक्षागुरु और दूसरे विद्यागुरु थे। बालचंद्रने कहा था कि शाका शालिवाहन ११९७ भाव संवत्सर भाद्रपद शुद्ध १२ बुधवार मध्याह्न कालमें अपना अंत होगा। एक मास तक
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