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लक्ष्मीका उपयोग । [२०१ श्रवणबेलगुल गांवमें एक तालाव है जिसको मैसुरके पहले खजांची अण्णाप्पा सेठी जैनने बंधवाया था । लम्बा फुट ३०० चौड़ा फुट ४०० है। पूर्व बाजूके दर्वाजेपर जैन प्रतिमा पत्थरमें खुदी हुई है। .
बेलगुल गांवके बड़े मंदिरको हालीवीड़का राजा नरसिंह बल्लालका मंत्री हुलम्पा भंडारीने शाका १२०० के अनुमान बनवाया था । वहाँ कनड़ीमें शिलालेख है उसका भाव है" नयकीर्ति मुनिका शिष्य भानुकीर्तिको शक १२०० बहुधान्य नाम संवत्सरे चैत्र सुद्ध १ रविवारके दिन सवणपुर नामका गांव (वेलगुलसे एक कोस पर है ) जागीर दिया। दूसरा शिलालेख है जिसमें शाका १२८० कीर्ग संवत्सर भाद्रपद शुद्ध १ है। आगे नहीं पढ़ा गया। यहाँके अनंतनाथके मंदिरको मूलसंघ देशीयगण कुंदकुंदाचार्यान्वय चारुकीर्ति पंडिताचार्यके वक्त मंगा स्त्रीने बनवाया है। शाके १७५२में खरनाम संवत्सरमें मैसुरके राजा कृष्णराजने श्री बाहुबलि स्वामीकी सेवार्थ चारुकीर्ति पट्टाचार्यको ५ गांव इनाममें दिये हैं जो अब तक जागीरमें मौजूद हैं।
इन दोनों पर्वतोंपर १४४ शिलालेख हैं जिनकी नकल व इंग्रेजीका उल्था राइस साहबने अपनी पुस्तकमें छपाया है जिसका नाम हैं " Inscriptions at Sravanbelgola " जो बंगलोरके सर्कारी प्रेससे मिलती है। यहाँ पर मुनियोंका सदा निवास रहा है। बहुतसे लेखोमें उनकी पट्टाक्ली व समाधिमरणकी बात है। भद्रबाहु श्रुतकेवलीकी समाधि यहीं हुई। उस समय मौर्यवंशी राजा चंद्रगुप्त मुनि अवस्थामें मौजूद थे। उन्होंने ही अंततक सेवा की थी।
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