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लक्ष्मीका उपयोग |
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निर्मल, शांतस्वरूप, बहुत विस्तीर्ण, मनोहर बाहुबलि स्वामीकी नग्न मूर्ति नज़र आती है। मूर्तिके दर्शनसे अंतःकरणमें एक प्रकारका आश्चर्य युक्त आनंद होता है । १६ हाथ चौड़ी और ४० हाथ ऊंची ऐसी उत्कृष्ट ध्यानारूढ़ तेजस्वरूप मूर्तिकी तरफ रातदिन नेत्र लगाके बैठे तौभी तृप्ति नहीं हो सकती । बाहुबलिस्वामी प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव के पुत्र थे, इन्होंने दीर्घकाल तपश्चरण किया था जिससे चरण में वल्मीक लगे हैं उनमेंसे सर्प निकलके पांव से खेल रहे हैं । शरीर के ऊपर वेल चढी हैं ऐसा हुबेहुब भाव पत्थर में मनोहर खुदा हुआ देखने में आता है । गोमट्टस्वामी के बाएं हाथमें बालबोध अक्षर खुदे हैं" चामुण्डराजे करवियलें गंगरजे सुतालय करवियलें"
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इस ही अभिप्रायके सीधे हाथमें कानड़ी और द्राविड़ लिपिमें अक्षर खुदे है | चामुण्डराय विक्रम संवत् ६०० के अनुमान हुए है + | उन्होंने सवयं यह अक्षर लिखवाए है ऐसा ब्रह्मसूरि शास्त्री कहते हैं |
वाई तरफ जो कनडी अक्षर हैं उनका तात्पर्य है
" नयकीर्ति सिद्धान्त चक्रवर्तीका शिष्य बसदी सेठीने कोट बंधायके चौवीस तीर्थंकरोंकी प्रतिमाएं स्थापित कीं ।" यह प्रतिमाएं श्री बाहुबलि स्वामीकी मूर्तिके पीछे प्रदक्षिणा में विराजित हैं । गोमट्टस्वामीकी बाई तरफकी इमारत में एक तेलिया पत्थरपर लिखा है
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नोट- वर्तमान में चामुंडराय के होनेका संवत लगभग माना जाता है । देखो प्रशस्ति गोमट्टबार ।
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