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१८२ ] अध्याय छठा । कभी २ पूजन सुनने बैठ जाती, कभी कोई शास्त्र पढ़ता तो सुनने लग जाती, दान धर्म करनेमें भी खूब मन चलने लगा। इसकी ऐसी चेष्टा देख बुद्धिमान जन अपने दिलमें यही जानते हुए कि जो कोई जीव इसके गर्भमें आया है वह कोई पुण्यवान, धर्मात्मा और उत्तम जीव है । सेठ माणिकचंद भी बड़े चतुर थे, इनको भी अपनी पत्नीकी विलक्षण दशा देखकर मनमें यही भान हुआ कि हमारे पुण्य वृक्ष खिला हैं, किसी महान जीवने आकर मेरी स्त्रीके गर्भवासको पवित्र किया है। कुछ मासका गर्म हो गया, तब सेठ माणिकचंदने मनमें विचारा कि यहां रूपावाईके एक छोटे पुत्र प्रेमचंदकी सम्हाल है, पानाचंदकी स्त्री छोटी व निर्बल रोगी है, नवलचंदकी वह बहुत ही छोटी है, यहॉपर प्रसुति होनसे बालककी सम्हाल नहीं हो सकेगी अतएव इसको अपनी माताके यहां भेज देना ठीक होगा । सेठ हीराचन्दजीसे आज्ञा ले आप अपनी स्त्रीको नान्नेज ग्राम पहुँचा आये । धीरे २ प्रसूतिका दिन आ गया
और सं० १९३६ के मिती पौष वदी १० (गुजराती मगसर वदी १०) के दिन चतुरमतीने शुभ नक्षत्रमें एक चंद्रमुखी पुत्रीका जन्म दिया। यह कन्या बहुत ही सुन्दर शरीर, सौम्यवदन और गंभीर मुखवाली थी। माता देखकर बहुत प्रसन्न हुई और अपने पिताको इशारा कराया कि सेठ माणिकचंदनीको तार देकर बुला लिया जावे क्योंकि चतुरबाईका अति गाढ़ प्रेम सेठजीकी तरफ हो उठा था । तार पाते ही सेठ माणिकचंद नान्नेज आ गए और पुत्रीकी जन्म कुंडली ठीक करा उसका नाम मगनमती रखा । सेठजी एक माससे अधिक वहीं ठहरे । पुत्रीका गंभीर, सौम्य, गोल और विशाल मुख
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