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अध्याय सातवाँ ।
श्रीमत् श्रीसम्मेद शिखर मंदिर जैन दि० तस्य जीर्णोद्धार प्रतिष्ठा करापितं गादि पालगंज राजासाहव श्री श्री पार्श्वनाथासिंहजी प्रतिष्ठाचार्य श्री धर्मदासजी......वदी २ संवत १९३९ मंदिर पालगंजमें अयं सत्यः।
एक दफे राजाको कुछ द्रव्यकी जरूरत हुई । आपने देशमें घूमकर ७५०००) जमा करके राजाको कर्ज दिलाए। जब शिखरजीके पहाड़ पर वाडेम नामके अंग्रेजने सूअरका कारखाना किया था उसके उठानेमें आप प्रयत्नशील थे। कलकत्तेके राय बद्रीदासजीसे आपका पत्र व्यवहार रहता था । आपने ही बद्रीदासजीको दृढ़ किया कि इस हिंसाके कामको बन्द करानेका प्रयत्न करो । उस समय दिगम्बर श्वेताम्बरमें पूरा २ मेल था । आपके पत्रकी नकल जैन बोधक' अंक ४१ माह जनवरी १८८९ में छपी है जिसके कुछ वाक्य दिये जाते हैं
पत्र मिती भादवा वदी ८ संवत १९४५
" चिठी आपकी श्री शिखरजीस आई जिसका जवाब आपके पास भेजा था । चिठी १ खानदेशसे आई । श्री शिखरजीका आपकू बहुत फिकर है सो ऐसा ही चाहिजे । आपन मजक बी सबसे पहले वाकफ कर्या था जबसैं मैं इस कामकी पुरी २ तंदवीर में हूं। धर्मप्रसादसे सर्व अच्छा होवैगा । आपकी चिठी पाते ही मैंने लाट साहबसे जुवानी सब हाल कहे पीछे अरजी दीनी । उन्होंने उसी वक्त नागपुरके कमीसनरके नाम हुकम जाहारी किया शिखरजीमें जाकर दयाफ्त करो और जबतक दूसरा हुकम न हो चरबीका काम बंद रहै ।............बहुत
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