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अध्याय सातवाँ।
और सदाचारी पुत्रोंके पुण्य और पुरुषार्थकी खूब ही सराहना करते थे। ___ सुरतकी प्रतिष्ठासे इन तीन पुराषार्थी पुरुषोंका यश और भी विस्तृत हो गया।
सं० १९४० के जाड़ेके दिन आए । बम्बईमें एक दिगम्बर श्री गोमट्टस्वामीजी
र जैन गुजराती प्रसिद्ध धनाढ्य सेठ सौभाग
, शाह मेघराज रहते थे। इनकी भी धर्ममें बड़ी कायात्रास.१९४० । प्रीति थी तथा इनके भाई सरत गहीके चंद्रकीनि नामके भट्टारक थे, जिनका वर्णन अध्याय दूसरेमें आया है। इन्होंने एक दिन बम्बई मंदिरमें वर्णन किया कि हमारी इच्छा दक्षिणकी ओर श्री जैनबिद्री और मूलबिद्रीकी यात्रा करनेकी है, जिनभाइयोंकी इच्छा हो साथ चलें । सेठ माणिकचंदनी तुर्त तयार होगए । इनके उद्यत होते ही १२५ मनुष्योंका संघ यात्राके लिये जुड़ गया। सेठ पानाचंद और माणिकचंद और रूपाबाई आदि सर्व कुटुम्ब लड़के बच्चे यात्राको रवाना हुए । घरमें केवल नवलचंद सकुटुम्ब रहे ताकि व्यापारका काम बन्द न पडै । इस यात्रामें इन प्रसिद्ध मोतीके जौहरियोंने बहुत रुपया खर्च करना विचारा । कई महाशयोंको यात्रा करानेमें भली भांति मदद भी की। सेठ माणिकचंद बड़े परोपकारी थे। सबको आराम पहुंचाकर आप आराम करते थे । रास्तेमें सबके टिकट, माल असवावका प्रबन्ध, ठहरनेके लिये स्थानकी तलाश, हिसाबका रखना, वहांवालोंसे वार्तालाप करना यह सब काम बहुतही खटपटी निरालसी सेठ माणिकचंदके जिम्मे था।
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