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लक्ष्मीका उपयोग । [ १९१ देखते हैं कि एक बहुत स्वरूपवान सेठ सिंहसमान दैदीप्यमान मुखाकृतिको रखनेवाले, धोती दुपट्टा ओढ़े हुए श्री जिनेन्द्रकी प्रछाल पूजा करके आये और शास्त्रम्वाध्याय करने लगे । सेठ हीराचंदने इनको प्रतापशाली व धर्मप्रेमी तथा स्वाध्यायमें अनुरक्त देखकर बात करनेकी इच्छा दिलमें धारण को। जब यह सेठ स्वाध्याय कर चुके तब ही अपना स्वाध्याय पूर्ण किया और इनसे कुछ पूछना ही चाहते थे कि इतने में सेठ माणिकचंदने अपनी आदतके वश स्वयं प्रश्न किया कि आपका कहाँ निवास है, कब आए इत्यादि । परस्पर वार्तालापसे सेठ माणिकचंदने निश्चय कर लिया कि यह एक बुद्धिमान, चतुर, विद्वान्, शास्त्रके मर्मी तथा परोपकारी व्यापारी हैं। आपने सेठ हीराचन्दको अपनी दूकानपर बुलाया ।
माणिकचन्दनीने दुकानपर इनका बहुत सन्मान किया तथा हित जनाया। यही प्रथम अबसर है जब सेठ माणिकचंदने अपने जीवनके धर्मकायों में मुख्य मंत्र देनेवाले सच्चे धर्मात्मा मित्रसे मिलने का लाभ लिया । बातचीत होते हुए सेठ माणिकचंदने यूछा कि आजकल जैन जातिमें कौन २सी आवश्यकताएं हैं जिनमें धन व्यय करना चाहिये ? उत्तरमें सेट हीरांचंड़ने कहा कि आजकल जैन जातिमें धर्मविद्याका बहुत कम प्रचार है, लोग स्वाध्याय बहुत कम करते है, तथा जो इंग्रेजी पढ़ते हैं उनको धर्म शिक्षा बिलकुल नहीं मिलती, बहुतसे लोग स्वाध्याय करना भी चाहते हैं तो उनको ग्रंथ बड़ी कठिनतासे मिलते हैं, प्रायः पुजा पाठ आदिके ग्रन्थ लिखे हुए अशुद्ध देख पड़ते हैं इससे लोग अशुद्ध पूना पढ़ते हुए दीख पड़ते हैं, आपने अपनी गिरनार व पालीताना
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