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सेठ माणिकचंदकी वृद्धि । । ११५ उस समय कुटुम्बियोंका ज्यादा जमाव देखकर इनने सबसे कहा कि इनके पास वे ही रहें जो धर्मके पाठ व णमोकार मंत्र पढ़ें, शेष दूर २ बैठे और इस तरह बात न करें जो इनके कानमें शब्द जाय।
र त्रिको अनुमान ३ बजे होंगे तब विनलीबाईने कहा कि मुझे शय्यासे भूमिपर ले लो। भूमिपर वासका साथरा करके उन्हें धीरसे लिटा दिया गया। उस समय साह हीराचंद स्वयं बड़े ही मिष्ट वचनोंसे णमोकार मंत्र पढ़ने लगे व बारह भावना या ममाधिमरणका पाठ सुनाने लगे । धर्मध्यान करते २ विजलीबाईकी आत्मा प्रातःकाल होते होते इस क्षणिक शरीरको छोड़ कर चल दियाजीवके सम्बन्धमें होते हुए जो कान्ति शरीरकी थी वह सब जाती रही। अंगोपांग वैसेके वैसे रहते हुए भी शरीर अचेतन-जड़-मिट्टीके समान होगया । वे नाना प्रकारके ज्ञान पूर्ण विचार जो अभी २ शरीरके आश्रय हो रहे थे वे सर्व बंद होगए । कारण यही कि चैतन्य गुणधारी पदार्थ इस तन रूपी झोपड़ीसे बाहर चला गया । जीवन क्षणिक है। कोई भी शरीरधारी अमर नहीं रह सक्ता, सर्व ही को परलोकमें जाना है, अतएव ज्ञानी जीव परलोकके लिये अवश्य यत्न रखते हैं। जो वर्तमानके विषयभोगोंमें गाफिल हो जाते हैं वे आने आपको ठगत हैं और खोटी गतिमें जानेकी तय्यारी कर लेते हैं । चारों ही पुत्र अपनी माताको
अनबोल व मुर्दा देखकर हम असहाय हो गए ऐसा मानते हुए। -माणिकचंद और पिता हीराचंदके आंखोंसे आंसुओंका टपकना बन्द न हुआ। प्रातःकाल ही सर्व दग्ध क्रिया आदिका प्रबन्ध
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