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अध्याय छठा । इससे वहाँके लोगोंमें भी जवाहरात खरीदनेकी बहुत उमङ्ग हुई थी। सेठ माणिकचंद पानाचंदका बहुतसा मोती इन शहरोंमें भी खूब विका । इतने ही में हिन्दुस्तानमें यह खबर उड़ी कि ता० १ जनवरी सन् १८७७ ( अर्थात् संवत १९३४ ) को दिहली में एक बड़ा भारी दरबार होगा जिसमें सर्व राजा महाराजा आदि प्रतिष्ठित जन शरीक होंगे। इस दरबारकी खबरने और भी लोगोंके चित्तको सुन्दर २ वस्त्राभूषण खरीदनेके लिये उभार दिया । इस मौकेको पाकर उक्त सेट माणिकचंद पानाचंद और भी उद्योग शील हुए और अच्छे २ मोतीके कंठे बनाकर बम्बई व हिंदुस्तानमें विक्रीकर खूब नफा उठाया । यह दरबार भारतमें बड़ा नामी हुआ। पार्लियामेन्टने महारानी क्वीन विक्टोरियाको एम्प्रेस
आफ इन्डिया अर्थात् भारतकी बादशाहज़ादीका पद देनेके लिये यह दरबार करवाया था। इससमय भारतके वाइसराय लार्ड लिटन थे। इस दरबारमें बहुतोंको ईनाम व पेन्शने दी गई तथा १६००० कैदी छोड़ दिये गए । माणिकचंदजीको इधर उधर हरएकसे मिलने जानेका व सभा
आदि देखनेका बहुतही शौक था। यद्यपि विलायतसे यह दुकानमें व्यापारकी अधिकतासे दिहली व्यापार । तो न जासके पर बम्बईमें इसकी चर्चा में
खूब दिल लगाते थे। इन्होंने मालम किया कि विलायतवालोंको भी जवाहरात लेनेका अब शौक हो चला है। नब प्रिन्स आफ वेल्स विलायत लौटकर गए और अपने मित्रोंसे
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