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सन्तति लाभ ।
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अध्याय छठा।
सन्तति लाभ । ज्यों २ बृटिश राज्यकी दृढ़ता भारतमें होती गई त्यों २
विलायतके साथ भारतका व्यापार संबन्ध व्यापार वृद्धिका बढ़ता गया। संवत १९३२ या सन् १८७५ कारण। में जब यहां लार्ड नार्थब्रुक वायसरायका काम
कर रहे थे तब भारतमें एक बड़ी भारी बात यह हुई कि भारतकी रमणीकता हाल जानकर भारतकी सैर करनेके लिये बादशाह इंग्लैण्डके पुत्र प्रिन्स आफ वेल्स बम्बईमें ता. ८ नवम्बरके दिन पधारे, उनके स्वागतार्थ सारा बम्बई नगर खूब सजाया गया था, जगह २ ध्वनाएं सुशोभित थीं, २ मास पहलेसे सर्व नगरवासियोंने अपने २ मकान झाड़ने, पोतने और संवारने शुरू कर दिये थे। हम बादशाहके. पुत्रसे मिलेंगे ऐसी उत्कंठा देशीराजाओं व प्रतिष्ठित मनुष्य और धनपात्रोंको हुई, इससे हमें वस्त्र और आभूषण अच्छे २ बनाने चाहिये, इस भावके जगनेसे बम्बई में जवाहरातकी विक्री खूब बढ़ी । मोतियोंके कंठोंकी बहुत माँग हुई । इस समय सेठ माणिकचंद पानाचंदने बहुत अच्छे २ कंठे तय्यार किये और दलालोंके द्वारा विक्री कर बहुत लाभ उठाया। इन चारों माइयोंमें मोतीको छांट कर ठीक रीतिसे ऐसा सजाना कि उन सर्वकी लड़ी एक विशाल शोभाका विस्तार कर इस बातका एक अपूर्व गुण था। राजकुमार दिहली, पटियाला, ग्वालियर, इन्दौर. आदि स्थानों में भी गए थे
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