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अध्याय चौथा ।
सम्बन्धी के साथ बम्बई आया और अपनी बहिन के यहां ठहरा । बहिन के कहने से सेठ हेमचंढ़ने पानाचंदको भी मोती पुरानेके काम पर सीखनेको बिठा दिया ।
इसने बहुत ही थोड़े दिनों में इस हुनर को सीख लिया, क्योंकि यह बहुत चतुर व भाग्यशाली था । इसके पगमें पालकीका आकार था। इनको देखकर प्रवीण पुरुष भाग्यशाली कहकर बुलाते थे । बाद सीखनेके इसको भी व्यापारियोंसे मोती पोरनेका काम मिलने लगा । मोतीचन्द और पानाचन्द दोनों भाई बहुत दिलचस्पी से व्यापारियोंका काम कर देते थे, जिससे इनको परिश्रमका अच्छा फल मिलने लगा । एक दिन दोनों भाइयोंने सलाह की कि बहिन के यहां सदा ही खाना पीना अच्छा नहीं । यहाँ परदेशियों के जीमनेके लिये वीसियां व भोजनशालाएं बहुत हैं, हम उनमें खर्च देकर भोजन कर आएंगे और स्वतंत्रता से रहेंगे ऐसा बिवार दोनों भाइयोंने किया और एक दिन अपनी बहिन को अपने मनकी बात समझा दी । हेमकौर बड़ी चतुर व समझदार थी। इनको आज्ञा दे दी। अब ये दोनों बीसी में जीमने लगे और रुपये कमाकर अपने पिताजीको भी भेजने लगे ।
सं. १९१९ की दिवाली के उत्सव देखनेके लिये इनकी बहिन मंच्छाकुमरी बम्बई आई, क्योंकि उस बम्बईकी दिवाली। समय बम्बईकी दिवालीकी शोभा मशहूर थी । अब भी दिवाली में बम्बई बहुत ही सुसज्जित हो जाती है। मंच्छाबहिन ने अपने दोनों भाइयोंको मोती पुरानेके काम में उद्योगी व अपने परिश्रमसे द्रव्य कमाते व खर्च
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