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१५० ] अध्याय पाँचवाँ । मेवाड़ खेरवाड़ा ता० २२ मई सन् १८५४ है। इसकी अंग्रेजी नकल यह है
NOTICE. To all whom it concerns the shrine of Rikhabdeva being one held in great sanctity by the Hindus of Gujrat and other countries, gentlemen and others encamping in the place are requested not to kill peafoul or peageons in the neighbourhood or to catch the fish in the small pucka tank, near the village or to kill. animals there. Kherwarah
John C. Brooke 22 nd May Captain Sule-Hilly Trocks, 1854.
Mewar. इस क्षेत्रकी भक्ति करनेकी बहुत कालसे सेठ हीराचंदनीकी इच्छा थी सो अब सर्व कुटुम्बको लेकर सेठ हीराचंदजी केशरियाजी पधार। सेठ माणिकचंद पानाचंद और मोतीचद व्यापारार्थ बम्बई ही में ठहरे । वहाँ जाकर इन्होंने बहुत कुछ दान पुण्य किया। यहाँसे श्रीतारंगानी गिरनारजी और पालीतानाकी यात्रा बड़े भावसे की
और धर्ममें जी खोलकर पैसा लगाया । यात्रासे लौटकर श्री केशरियाजीकी वीतराग प्रतिमाकी महिमा अपने पुत्रोंसे कही जिसे सुनते ही माणिकचंदजीसे न रहा गया वे अकेले एक नौकरको साथ ले केशरियाजी पहुंचे और वहां बड़े भावसे पूजन भजन करके बहुत दान पुण्य किया। . सेठ माणिकचंदजीका चरित्र लिखते हुए ता० २५ अक्टूबर
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