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अध्याय पाँचवाँ ।
जो क्लेश हुवा व मोतीचंदको जो उदासी हुई उसको वे ही जानते हैं। संसारका चरित्र ऐसा क्षणिक है कि किसीका भरोसा नहीं है । जिस वस्तुपर यह आस्था की जाती है कि यह वस्तु हमारे पास बनी रहेगी वही वस्तु कालान्तरमें जब लुप्त हो जाती है तब इस क्षुद्र मनुष्पका कोई वश नहीं चलता और यह हाथ मलकर रह जाता है। जिस कुटुम्बको थोड़े ही दिन पहले सेठ माणिकचंदजीके विवाहसे हर्ष हुआ था उसीको इस समय शोक प्रवाहमें बहना पड़ा। __थोड़े ही दिन पीछे सेठ हीराचंदनीके भाव श्री केशरियाकेशरियाजीको यात्रा जाकी यात्राके हुए। गुजरात व मेवाडके
" 'जैनियोंको इस अतिशय क्षेत्रकी पूर्ण भक्ति है। यह क्षेत्र उदयपुर राज्यमें धुलेव व ऋषभदेव नामके ग्राममें है। जहाँ यह क्षेत्र है वहाँ अति प्राचीन श्रीऋषभदेवजी जैनियों के प्रथम तीर्थकरकी बहुत ही मनोज्ञ और सौम्य दिगम्बर जैन विम्ब मूल मंदिरनीमें विराजमान है। वही केशरियाजीके नामसे प्रसिद्ध हो गया है। प्रायः जैनियोंमें भी ऐसे लोग पाए जाते हैं जो किसी लौकिक कामकी सिद्धिके लिये ऐसी कामना करते हैं कि यदि हमारा अमुक कार्य सिद्ध हो जायगा तो हम अमुक काम करेंगे । किसी प्रसिद्ध धनाढ्यने यह भावना की होगी कि हमारा अमुक काम हो जायगा तो हम अमुक तौलभर केशर चढ़ावेंगे। उस कार्यकी सिद्धि उसके पूर्व पुण्यके उदयसे हुई पर उसने यही विश्वास कर लिया कि मैंने जो मानता मांगी थी उसको श्री ऋषभदेवजीने पूर्ण कर दी, उसने वहां बहुतसी केशर चढ़ाई। यह
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