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सेठ माणिकचंदकी वृद्धि |
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सामग्री बंधवाकर घर आया । साहजीने तीनों लड़कोंको सामग्री साफ करके तय्यार करने को आज्ञा दी। उन तीनोंके साथ नवलचंद भी चॉवल उलटने पलटने लगा । उस समय माणिकचदका मुंह सबसे अधिक उदास था । यद्यपि वह ८ वर्षका था, पर वह समझता था कि माताजीने अंत समयपर दान करने को यह सामग्री मँगाई है । माणिकचंदका चित्त बड़ा कोमल था। किसी खास बातका उसके दिलपर बड़ा असर हो जाता था । कभी २ आंखसे पानी भी निकलनेको होता था, पर वह रोक लेता था कि और भाई बुरा समझेंगे ।
सामग्री तय्यार होने पर सूरतके सर्व मंदिरों में दिये जानेको साहजीने थाल सजे और यथायोग्य दो दो एक एक रुपया नगढ़ी रखकर विजलीबाई के सामने रख दिये । बाईने कहा कि हर एक मंदिर में इनको भेज दो । साहजी ने लड़कोंके द्वारा मंदिरों में सामग्री भिजवा दी तथा प्रबन्ध करके २५० ) और उसके सामने रख दिये और कहा - "जहाँ तुम्हारी इच्छा दानकी हो वहाँ दान करो।" इस समय मंच्छाकुमरी भी आ गई थी । वह देखकर रोने को हुई परन्तु साहजीने मना किया । विजलीबाईने २५० ) देखकर एक दफे पति से कहाआप मेरे लिये कष्ट न सहें। मंदिरों में सामग्री भेज दी सो बस है । हीराचंदजीने कहा मैं इस समय लाचार हूँ नहीं तो तुमने जो उपकार किया है उसके लिये मैं कुछ नहीं कर सक्ता । हजारों लाखोंका दान तुम्हारे हाथसे होता । मेरी तो यह भावना थी । यह रकम तो कुछ नहीं है। श्री जिनेन्द्र के प्रतापसे व्यापारद्वारा सब कुछ मिल जायगा, सब कुछ हो लेगा; पर तुम्हारे हाथसे दान तो
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