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सेठ माणिकचंदकी वृद्धि |
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अवस्था ।
इस समय माणिकचंदकी अवस्था ७ वर्षकी थी । पिताने इसे देशी निशालमें पढ़ने भेज दिया । नवलचंद घरहीराचन्दकी चिंतित हीमें माता पिताद्वारा शिक्षा प्राप्त करता था । संवत् १९१६ का वर्ष हीराचंद के लिये कठिन था। उधर पुत्रोंका खर्च बढ़नेके साथ २ व्यापार में शिथिलता हो गई। इधर विजलीबाईका शरीर बहुत नर्म रहने लगा और थोड़े दिनोंके पीछे ऐसा शिथिल हो गई कि उससे घरका कामकाज भी न होने लगा । बड़ी कठिनता से कुछ दिन सारे कुटुम्बकी रसोई बनाई परंतु जब अधिक ढीली पड़ गयी अर्थात् शय्यासे उठा नहीं गया तब हीराचंदजी और छोकरोंको मिलकर सबकी रसोई बनानी पडी व घरका सब कामकाज करना पड़ा । इस समय हीराचंद को चित्तमें बहुत खेद रहने लगा । व्यापारमें लाभ कम होनेसे घरका खर्च बडी तंगीसे चलता था तथा अपनी पतिभक्ता स्त्रीके शरीर शिथिल होनेसे मनको और भी उदासी हो गई थी । संसारकी विचित्र दशा है । पुण्य पापकर्मका उदय एकके पीछे दूसरा आया ही करता है । इस समय मोतीचंद् १३, पानाचंद ११, माणिकचंद ८ तथा नवलचंद ५ वर्षके थे I सिवाय छोटे तीनों अपना बहुतसा काम अपने आप कर लिया करते थे। सबोंमें माणिकचन्दको अभीसे धर्मकी बहुत बड़ी लग्न थी, यहाँतक की हररोज पासके मंदिरजीमें जा और लोगोंके साथ श्री जिनेन्द्रकी प्रतिमाओंका प्रछाल किया करता, जाप देता व कभी २ पूजनमें भी खड़ा होता था । पिताको इस समय दुःखी व उदास देखकर मोतीचंद और पानाचंद आश्वासन देते थे, जिसमें
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