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१०२] अध्याय तीसरा । हों, आचरणमें कुशल और निर्मल हों, यही भावना निरंतर विजलीबाईके हृदयमें लहराया करती थी। . मोतीचंदके जन्मके २-२॥ वर्ष पीछे ही संवत् १९०५ आषाढ़
सुदी ८ के दिन जब अष्टान्हिकाका महान सेठ पानाचंदका पर्व प्रारंभ होता है, विजलीबाईको दूसरे पुत्रजन्म। रत्नका लाभ हुआ । इस पुत्रका उदय देख
कर व इनके मुखको निहारकर माताको बड़ा ही हर्ष हुआ। पिताने इसका नाम पानाचंद रक्खा । यद्यपि हीराचंद अफीमका काम करते थे पर अपना नाम हीरा होनेसे पन्ना हीरा मोती आदि जवाहरातके धन्देका मानो स्वप्न ही देखते थे और यह भावना रखते थे कि हम अपने पुत्रोंको जौहरी ही बनाएंगे। इसी भावनासे प्रेरित हो ऐसे ही नाम अपने पुत्रोंके नियत किये। पानाचंदके जन्मपत्रका हाल सुनकर हीराचंद व कुटुम्बियोंको बड़ा ही आनन्द हुआ। जैसा इसका मुख अपने उच्च भाग्यको प्रगट करता था ऐमा जन्मपत्रने भी सूचित किया। मातापिताको अपने पुण्यके उदय पर बड़ा ही सन्तोष था। इस समय हेमकुमरीकी अवस्था १२ वर्षकी हो गई थी।
अबतक इसकी सगाई मातापिताने नहीं की हेमकुमरीका लग्न । थी। यद्यपि चारों ओरसे माँग आरही थी।
अब साह हीराचंदने विवाह योग्य जान हेमकुमरीकी लग्न बागड निवासी पर बम्बईमें व्यापार करनेवाले एक वीसाहूमड सेठ प्रेमचंदके पुत्र हेमचंदके साथ बड़े प्रेमके साथ कर दी। इस लग्नमें साह हीराचंदने सम्बन्धियोंका बड़ा सन्मान किया और
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