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उच्च कुलमें जन्म ।
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न अपनी शक्तिको छिपाकर न स्वशक्तिसे बाहर विवाहमें खर्च उठाया। हेमचंद बड़ा ही सुशील, सौम्यमुख, उद्योगी और धर्भ प्रेमी १८ वर्षका युवान था। हेमकुमरी हेमचंदको प्राप्त होकर परस्पर प्रीतिमें इस तरह
रम गई जैसे हेमकी चमक हेममें रम जाती सेठ चुन्नीलालका है और दोनोंकी एकता अति सुन्दराकार परिचय। सुवर्णको दिखाती है। हेमचंद प्रेमचंदका
व्यापार बम्बईमें चलता था। यह जरीके कामके लिये प्रसिद्ध थे । अब भी इनके यहाँ ज़रदोज़ी काम बहुत ही अच्छा होता है । सेठ हेमचंद व हेमकुमरीके तीन पुत्रोंमें एक पुत्र सेठ चुन्नीलालजी इस समय बम्बईमें विद्यमान हैं। इनको धर्मसे बड़ा ही प्रेम है। श्री जिनेन्द्रकी भक्ति व स्वाध्यायमें निरन्तर लीन रहते हैं। इनकी स्त्री नंदकोरबाई भी बड़ी धर्मात्मा लिखी पढ़ी व पतिभक्त हैं। इनसे ५ पुत्र व १ पुत्री है। बड़े पुत्रका नाम अमरचंद है, जो व्यापारमें दक्ष है। इससे छोटा पुत्र रतनचंद बी० ए० क्लासमें पढ़ रहा है, तीसरा नौनीतलाल इन्टरमें पढ़ रहा है और और २ लड़के भी विद्याभ्यास करते हैं। सेठ चुन्नीलालजीने श्री पावागढ़ क्षेत्रके एक प्राचीन जिन मंदिरका जीर्णोद्धार कराया है और उसकी प्रतिष्ठामें भी खूब द्रव्य लगाकर उस मौकेपर बम्बई दिगंबर जैन प्रांतिक सभाका वार्षिक अधिवेशन कराया था। आप श्री पावागढ़ क्षेत्रकी प्रबन्धकारिणी सभाके सभापति हैं। व्यापार भी अच्छा चलता है । बम्बईके गुजराती प्रतिष्ठित धनाढयोंमेंसे आप भी एक प्रसिद्ध मान्य पुरुष हैं और गुजराती मंदिरके
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